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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ१ शारीरस्थान भाषाटीकासमेत । (२६५) - गर्भमप्लवका काल। पुनामदोहदप्रश्नरतापुंस्त्वप्रदर्शिनी । . तस्मिस्त्वेकाहयातेऽपिकालः सूतरेतः परम् | उन्नते दक्षिणेकुक्षौ गर्भे च परिमण्डले ७०॥ वर्षाधिकारकारीस्यात्कुक्षौवातेन धारितः॥ पुत्रसून पुत्रसूतेऽन्यथा कन्यांयाचेच्छति नृसंगतिम् ___ अर्थ-अष्टममासके व्यतीत होनेके एक | नृत्यवादित्रगांधर्वगंधमाल्यप्रिया च या ॥ ___ अर्थ-जिस गर्भिणी के दाक्षण स्तन में दिन पीछेसे बारहवें महिने तक गर्मके प्रसव प्रथम दूधका प्रादुर्भाव होता है उसके पुत्र का काल होता है । बारह महिने के पीछे यदि का जन्म होता है, जो स्त्री अपनी दाहिनी पार्श्व वायुके कारण गर्भ न निकले तो अवश्य ही से गमन शयनादिक कार्य की चेष्टा करती वह कुछ न कुछ विकार करता है ॥ है उस के भी पुत्र होता है तथा चलने में मवम मासका उपचार ॥ जो पहिले अपना दाहिना पांव उठाती है शस्तश्च नवमेमासिस्निग्धोमांसरसौदनः। तथा काम करने में जो प्रथम अपने दाबहुस्नेहा यवागूर्वा पूर्वोक्तं चानुवासनम् ॥ हिने हाथको काम में लाती है वह पुत्र जतत एव पिचुंचाऽस्यायोनौ नित्यं निधापयत् नती है । जो गर्भिणी पुरुष नामवाले दौहवातघ्नपत्रभंगांभःशीतंत्रानेऽन्वहं हितम्॥ | द और पुरुष नाम वाले प्रश्नों में रत रहती मित्रहांगी ननधमान्मासात्प्रभृति वासयेत्। अर्थ-न महिनेमें गर्मिणी स्त्रीको मांस है तथा जो स्वप्न में पुरुष, हाथी, घोड़ा, बाराह रसयुक्त स्निग्धअन्न अथवा बहुत धृत मिला आम, अनार, अशोकादि पुरुष नामधारी पदार्थों को देखती है अथवा जिसकी दक्षिण कर यवागू तथा द्राक्षादि मधुर द्रव्योंसे सि कुक्षि ऊंची और गर्भस्थान गोल हो वह द्ध किये हुए घृतकी अनुवासन वस्ति देना गर्मिणी भी पुत्रको जनती है । हितकर है | तथा इस न महिनेमे वादीको ___ इन लक्षणों से विपरीत लक्षणवाली गशमन करने के निमित्त उक्त अनुवासन घृ. भिणी के कम्या होती है, जैसे वामस्तन में त में रुईका फोया भिगोकर गर्मिणीकी योनि दुग्ध, वाम पार्श्व से शयन, बाम पैर से में प्रतिदिन रखदिया करै । ऐसा करने से गमन, वाम हस्त से व्यापार, स्त्रीनाम गर्भ सुखपूर्वक बाहर आजाता है तथा वात वाले दौहृद और प्रश्न में रत, स्त्री नामनाशक पत्तों के काथ को ठंडा करके प्रति धारी हथिनी, थोडी आदिका स्वप्न में दिदिन स्नान के काम में लावै । .. खाई देना ये सब कन्या होने के लक्षण हैं मवम मास से लेकर जबतक बालकका इन के अतिरिक्त जो गर्भिणी पुरुष संग की जन्म न होले तवतक गर्भिणी को निःस्नेहांगी इच्छा करती है वा जिसको नाचना, बजा. न रक्खे अर्थात प्रतिदिन उसके देहपर तेल ना, गाना, सुगंधित द्रव्य और माला आदि लगाता रहै ॥ अच्छे लगते हैं वह भी, कन्या को जनती है पुत्रादि होने के लक्षण । नपुंसक होने के लक्षण । प्राग्दाक्षिणस्तनस्तन्या पूर्व तत्पार्श्वचष्टिनी॥ | क्लीव तत्संकरे तत्र मध्य कुक्षेःसमुन्नतम् For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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