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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org शारीरस्थान भाषाडीकासमेत । म १ हृदय भी संतप्त होता है और इसी कारण से गर्मणी को द्विहृदया वा दौहृदिनी अतु दो हृदयवाली कहते हैं । तब हृदय के पराधीन होने के कारण गर्भिणी के स्वभाघोचित अभिलाषाओं के सिवाय और भी अनेक प्रकार की वृक्ष उत्पन्न हो जाती हैं । गर्भावस्था में गर्भिणी की जो इच्छा होती है वही अभिलाषा गर्भ की भी गिनी जाती है । इसलिये गर्भिणी की इच्छा पूरी न करना किसी तरह भी हितकारक नहीं है । गर्मिणी स्त्री को यदि किसी अपथ्य विषय की भी अभिलाषा उत्पन्न हो तो उस अपथ्य को भी पथ्य में मिलाकर देना चाहिये परंतु बहुत ही कम देना उचित है। इसका कारण यही है कि गर्मिणी की स्पृा पूरी न करने से गर्म बहुत दिनका होगा तो विकृत रूप हो जायगा और थोड़े दिन का होगा तो पतन हो जायगा अतएव गर्मिणी की इच्छा पूरा करना अवश्य कर्तव्य है । तीसरे महिने में गर्भका लक्षण | व्यक्तीभवति मासेऽस्य तृतीये गात्रपंचकम् । मूर्धा सम्धिनी बाहू सर्वसूक्ष्मांगजन्म च । सममेव हि मूर्धाद्यैर्ज्ञानं च सुखदुःखयोः ॥ अर्थ- तीसरे महिने में इस गर्भ के मस्तक, दो पांव और दो हाथ ये पांच अंग तथा चेतना के अधिष्ठान संपूर्ण सूक्ष्म अंग उत्पन्न हो जाते हैं और मस्तक आदि के उत्पन्न होने के समय ही इस गर्न को दुख सुख का ज्ञान हो जाता है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६३) गर्भ के बढाने का प्रकार । गर्भस्य नाभौ मातुश्च हृदि नाडी निवध्यते । यास पुष्टिमाप्नोति केदार इव कुल्यथा ॥ अर्थ- गर्भ की नाभि और माता का हृदय एक ही नाडी से बंधे रहते हैं । नाडी को लोक में नाल कहते हैं, उसी नाडी से गर्भ पुष्ट होता रहता है, जैसे छोटा छोटी नालियों के द्वारा पानी बहता हुआ खेत में पहुंचकर खेत के अन्न को बढाता है वैसे ही माता के हृदय से बंधी हुई नाडी माता के आहार के प्रसाद नामक रस को नामिद्वारा सव देह में पहुंचाकर अंग प्रत्यंगों को पुष्ट करती है । यहां शंका होती है कि जब आहार का रस गर्भ में पहुंचता है तो वह मलमूत्र भी करता होगा इसका समाधान यह है कि साक्षात अन्न पान का प्रवेश नहीं होता है इसलिये स्थूल - रूप में मलमूत्रादि नहीं होते हैं 1 चौथे से सातवें महिने तक गर्भकी दशा । चतुर्थे व्यक्ततांगानां चेतनायाश्च पंचमे । षष्टे स्नायुसिरारामेबलवर्णनवत्यचाम् ॥ सर्वैः सर्वागसंपूर्ण भावैः पुष्यति सप्तमे । अर्थ - चौथे महीने में वे सूक्ष्म अंग जो अव्यक्त थे प्रकट हो जाते हैं, पांचवें महीने में बुद्धि और छटे महीने में स्नायु, सिरा, रोम, बल, वर्ण, नख और त्वचा प्रकट होजाते हैं। सातवें महिने में संपूर्ण भावों से संयुक्त होकर सब अंगों से पूर्ण गर्भ पुष्टिको प्राप्त. होता है । गणी के कंडवादि । गर्भमोत्पीडिता दोषास्तस्मिन् हृदयमाश्रिताः For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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