SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 358
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शारीरस्थान भाषाटीकासमेत । २६१) - . पुंसवन प्रयोग। गर्भिणी का उपचार । पुष्ये पुरुषकं हमें राजतंवाथवायसम् ३८॥ उपचारः प्रियहितैर्भर्ना भृत्यैश्च गर्भधृक् । कृत्वाऽग्निवर्ण निर्वाप्य क्षीरे तस्यांजाल- नवनीतघृतक्षीरैः सदा चैनामुपाचरेत् ४३॥ पिबेत् । अर्थ-पति और सेवक लोगोंके द्वारा अर्थ--पुष्य नक्षत्रमें सोने, चांदी अथवा | गर्भिणी स्त्री को प्रिय और हितकारी पथ्य लोहेकी पुरुषाकार पुत्तलिका बनवाकर उनको देकर जो उपचार किया जाता है, उसी से अग्निमें तपावै जब लालरंग की होजाय तब गर्भ की स्थिति रहतीहै अर्थात् गर्भ अकाल इसेदूध वुझाकर इसदूधको चार पल पान करै में गिरने नहीं पाता है । नवनीत घृत और अन्य प्रयोग। दुध द्वारा गर्भिणी स्त्री का सदा उपचार गौरदडमपामार्ग जीवकर्षभसैर्यकान् ३९ ॥ करता रहे ॥ पिवेत्युम्ये जले पिष्टानेकद्वित्रिसमस्तशः । गर्मिणी को त्याज कर्म । । अर्थ--सफेद ओंगा, जीवक, ऋषभक, अतिव्यवायमायासं भारं प्रावरण गुरु। . और श्वेतकुरंट इनमेंसे एक, दो, तीन वा अकालजागरस्वनकठिनोत्कटकासनम्४४॥ चारोंको जलमें पीसकर पुष्यनक्षत्रमें पानकरै।। ।। शोकक्रोधभयोद्वेगवेगश्रद्धाविधारणम् । उपवासाध्वतीक्ष्णोष्णगुरुविष्टंभिभोजनम् । - सफेदकटेरी की जड़। रक्तं निवसनं श्वभ्रकूपेक्षां मधमामिषम् । भीरेण श्वतवृक्षतीमूलं नासापुटे स्वयम् ॥ उत्तानशयनं यश्च स्त्रियो नेच्छंति तत्त्यजेत् । पुत्रार्थ दक्षिणे सिंचेदामे दुहितृबांछया। तथा रक्तस्रति शुद्धिं बस्तिमामासतोऽटमात् - अर्थ-सफेद फूलवाली कटरीकी जडको एभिर्गर्भःस्रवेदामःकुक्षौ शुष्येन्नियेत था। पानीमें पीसकर उस जलको पुत्रकी इच्छासे ____ अर्थ-अति मैथुन, श्रमोत्पादक कर्म, . बोझ लेचलना, भारी वस्त्र ओढना, रात में स्त्री स्वयं अपनी नासिकाके दाहिने छिद्रमें और पुत्रीकी कामनासे बांयेछिद्रमें सेचनकरै । जगना, दिन में सौना, कठोर वा उत्कट आसन पर बैठना, शोक, क्रोध, भय, उद्वेग, पुत्रोत्पादनमें अन्ययोग ॥ मलमूत्रादि बेगको रोकना, स्पृहाको रोकना, पयसा लक्ष्मणामूलं पुत्रोत्पादस्थितिप्रदम् ॥ नासयाऽऽस्येन बा पीतं पश्रृंगाष्टकंतथा। निराहार रहना, मार्ग चलना, तीक्ष्ण गरम ओषधीजीवनीयाश्च बाह्यांतरुपयोजयेत् ॥ भारी और विष्टंभी भोजन करना, लालवस्त्र अर्थ-जिस स्त्रीके पुत्र न होता हो वा | धारण करना, खाई वा कूप में झांकना, मद्य पुत्रोत्पत्ति के पीछे उसकी रक्षाके निमित्त ल- और मांस का सेवन, उत्तान शयन ( सीधा क्ष्मणाकी जड अथवा बटवृक्षके आठ अंकुरों सौना ) स्त्री को अनीप्सित कर्म (जिनको दूधमें पीसकर मुख वा नासिका द्वारा | कामों पर स्त्री की रुचि न हो ) रक्त स्राव पानकरै । इसीतरह “जीवनीय गणोक्त दस वमन बिरेचनादि द्वारा शुद्ध इन सब को 'औषधोंका स्नान और उबटने द्वारा वाह्यप्रयो | को गर्मिणी स्त्री त्याग देवे । तथा आठवें ग और आहार तथा पानद्वारा अन्तःप्रयोग करै महिनेसे पहिले गर्भिणी को अनुवासन वस्ति For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy