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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५८) अष्टांगहृदये । काल है। क्षीणता और प्रसन्नता,श्रोणि ( कटिपश्चात् । दिन तक शुभ की इच्छा करते रहना भाग ) और स्तनों में फडकन, आंख और चाहिये, तथा स्नानादि क्रिया न करना कुक्षि में शिथिलता, और पुरुष के संग चाहिये, अलंकार धारण न करने चाहिये रमण करने की इच्छा ये सब बातें जिस डाभ की शय्या पर शयन करना उचित है। स्त्री में होती हैं उसे ऋतुमती समझना दूध में पकाया हुआ यवान्न जो शरीर के • चाहिये यहीं उस के गर्भ ग्रहण करने का महास्रोत आमपक्वाशय नामक कोष्ठ ( गी धिष्टान ) का शोधन और कर्षण करता है . ऋतुकाल से पीछे योनिसंकोच । । थोड़ा सा केला के पत्ते, वा मिट्टी के पात्र पासकोचमायाति दिनेऽतीते यथा तथा२२ अथवा हाथ में धरकर खाना चाहिये । इस ऋतावतीतेयोनिःसाशुक्रं नातःप्रतीच्छति। तीन दिन में पुरुष से समागम करना अर्थ-दिनके समय खिला हुआ कमलका उचित नहीं है । चौथे दिन स्नान द्वारा फूल जैसे दिन के अंत में संकुचित होजाता शुद्ध होकर सफेद कपड़े पहन, मालाधारण है वैसेही ऋतुकाल अर्थात् रजोदर्जन के | कर प्रथम पति का दर्शन करे और पति बारह दिन व्यतीत होने पर योनि सुकड के सदृश पुत्रकी कामना करे । ऋतुमती "जाती है औरः वह वीर्य ग्रहण की इच्छा स्त्री स्नान के पीछे जैसा देखती है वा नहीं करती है। जैसा ध्यान धरती है वैसा ही पुत्र पैदा • वायुको कारणता । करती है। मासेनारचितं रक्त धमनीभ्यामृती पुनः २३ / ईषत्कृष्णं विगंधं च वायुयोनिमुखान्नुदेत् । ऋतुके कालका परिमाण । अर्थ-आहार के रसद्वारा वृद्धि पाया ऋतुस्तु द्वादशनिशाःपूर्वास्तिनश्वनिदिताः हुआ रक्त एक मासमें फिर वायुकी प्रेरणा | एकादशी वयुग्मासुस्यात्पुत्रोऽन्यासुकन्यका से योनि के मुखद्वारा निकलता है, इसका ___ अर्थ-रजोदर्शन के दिन से बारह दिन रंग कुछ कालापन लिये हुए गंधरहित होता ऋतु काल रहता है इनमें पहिली तीन रात्रि है । इस शुद्ध रक्तको पुष्प भी कहते हैं। जिनमें पुष्पकी प्रवृत्ति रहती है वे निंदनीय ऋतुकाल में स्त्री का वर्तन | हैं, इनमें स्त्री के पास जाना उचित नहीं सतः पुष्पेक्षणादेव कल्याणध्याधिनी व्यहम् है, ग्यारहवीं रात्रिभी अप्रशस्त है, चकार सृजालंकाररहिता दर्भसंस्तरशायिनी। से तेरहवीं रात्रिकामी ग्रहण है इसमें स्त्री औरय यावकं स्तोक कोष्ठशोधनकर्षणम् ॥ . संगम से नपुंसक संतान की उत्पत्ति होती पर्णे शरावेहस्तेवा मुंजीत ब्रह्मचारिणी। । है । शेष दिनों में युग्म दिन अर्थात् चौथे, चतुर्थेऽह्निततःस्त्रात्वाशुक्लमाल्यांबराशुचिः इच्छंती भर्तृसदृशंपुत्रं पश्येत्पुरः पतिम् । । छटे, आठवें, दसवें और बारहवें दिन मैथुन अर्थ-रजोदर्शन के दिनसे स्त्री को तीन | करने से पुत्रकी उत्पत्ति होती है, क्योंकि For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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