________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अ० २६
सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत।
(२११)
-
___ मंडलाय शस्त्र । मण्डला फले तेषां तर्जन्यंत खाकृति । लेखने छेदने योज्यं पोथकीशुडिकादिषु ५॥
अर्थ-मंडलाग्र शस्त्र के फलकी आकृति तर्जनी के अन्तर्नख के समान होती है । यह शस्त्र पोथकी, शुंडकी और वर्मरोगादि में लेखन छेदन में काम आता है ।
सर्पास्यशस्त्र । सपास्यं घाणकर्णाशश्छेदनेऽ(गुलं फले। ___ अर्थ-सर्प के मुख के सदृश सास्यशस्त्र
नाक और कान के अर्श को छेदन के काम वृद्धिपत्रादि शत्र।
में आता है, फलकी ओर इसका परिमाण वृद्धिपत्र क्षुराकारं छेदभेदनपाटने।
आधे अंगुल होता है। ऋज्यामुन्नते शोफे गंभीरे चतदन्यथा ६॥ नताग्रं पृष्ठतो दीर्घद्वस्ववक्त्रं यथाशयम् । उत्पलाध्यर्धधाराख्ये छेदने भेदने तथा ७ ॥
अर्थ-वृद्धिपत्र शस्त्र का आकार छुरे के समान होता है यह छेदन, भेदन और एक्ण्यादि शस्त्र । उत्पाटन में काम आता है । सीधेः अग्रभा- गतेरन्वेषणे लक्ष्णा गंडूपदमुखैषिणी ॥८॥ गवाला. वृद्धिपत्र उंची सूजन में काम में
भेदनार्थेऽपरा सूचीमुखा मूलनिविष्टखा ।
चेतसंव्यधर लाया जाता है । गंभीर सूजन में वह वृद्धि
नाव्ये शरार्यास्यं त्रिकूर्चके ॥९॥ पत्र काम में आता है जिसका अप्रभाग
| अर्थ-नाडीव्रण की सूजन का अन्वेषण पीठ की तरफ झुका होता है । उत्पलपत्र | करने के लिये एषणीशस्त्र उपयोगी होता लंबे मुखका और अध्यर्थधार शस्त्र छोटे मु· | है यह छने में कोमल और गिडोये के मुख खका होता है । ये दोनों छेदन और भेदन | की अकृितिवाला होता है । में काम आते हैं।
नाडीव्रण की गति का भेदन करने के लिये एक प्रकार का दूसरा एषणीशस्त्रं होता है इसका मुख सूची के सदृश और मूल संछिद्र होता है। __ वेतसयंत्रनामक एषणी बेधने के काम में आता है तथा शरारीमुख और त्रिकूर्चक नामक दो प्रकार के एषणी स्रावकार्य
For Private And Personal Use Only