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म. २५:
सूत्रस्थान भाषाकासमेत
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कंक मुख।
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सिंहास्य ।
ऋक्षमुख।
कहलाते हैं तथा घटिका अलावु, शृंग, ( सींगी ), जाववोष्टादि को मी यंत्र कहते हैं।
पों के रूप और कार्य।। अनेकरूपकार्याणि यंत्राणि विविधान्यतः३।। विकल्प कल्पयेदुखया
यथास्थूलं तु वक्ष्यते । मर्थ-यंत्रों की सूरत और उनके कार्य भनेक प्रकार के हैं, इसलिये अपनी बुद्धि से बिचार विचार कर जैसा काम पडे उसी के अनुसार यंत्र निर्माण करें । इसजगह हम स्थूल स्थूल यंत्रों का वर्णन करते हैं । समझदार वैद्य इनके नमूने के अनुसार अन्यान्य यंत्रों को भी बना सकता है।
स्वस्तिक यंत्र । तुल्यानिकंकसिंहलंकाकादिमृगपक्षिणाम्॥ मुखैर्मुखानि यंत्राणां कुर्यात्तत्संशकानि च । अष्टादशांगुलायामान्यायसानिच भूरिशः॥ मसूराकारपर्यतैः कण्ठे बद्धानि कीलंकैः। विद्यात्स्वस्तिकयंत्राणि मूले कुशनतानि च तैरस्थिसंलग्नशल्याहरणमिष्यते। .
अर्थ-यंत्रों के मुख कंक, सिंह, उळूक काकादि पशुपक्षियों के मुखके सदृश बनाये जाते हैं तथा इन यंत्रों के नाम भी आकृति के अनुसार ही रक्खे जाते हैं, जैसे कंकमुख यंत्र, सिंहास्य यंत्र आदि । इनकी लंबाई प्रायः अठारह अंगुल की होती है और बहुत करके ये लोहे के बनाये जाते हैं ( कहीं कहीं हाथी दांत के भी देखे जाते हैं ) इन के कंठ में मसूर की दाल के आकारवाली लोहे की कील जड़ी जाती है । इस के पकडने का स्थान अंकुश की समान टेढा
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काकमुख।
तरक्षु मुख ।
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