________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रस्थान भाषाटीकासमेत ।
-
उसे साधी चित्त शयन कराकर पांवोंको सु मर्मो सर्वावयवांगजाश्च कडवादे और घुटने ऊंचे करादे । आधा क
ये सति तेषां ननु कश्चिदन्यो
वायोः परं जन्मनि हेतुरास्ति ॥ ८५॥ र्ष वा कर्ष आदि क्रमसे स्नेहमात्रा को बढा
अर्थ--शाखा (चारों हाथ पांव ),कोष्ठ, ताहुआ एक दिन रातमें तीनचारबार उत्तरव
मर्मस्थान, ऊर्ध्वअंग और संपूर्ण देहके अवस्तिका प्रयोग करै, इसतरह तीनदिन करता
यवों में होनेवाले रोगों में वायु ही उन की रहै । अनुवासन तो एक रातदिनमें एकबार
उत्पति का प्रधान कारण है वायुके अतिरिक्त ही दी जाती है , यही अन्तर है।
और कोई कारण नहीं हैं । ऊर्ध्वअंगमें होने . फिरवस्ति प्रयोग।
वाले मुखरोगादि । सब शरीर में होने वाले म्यहमेव च विश्रम्य प्रणिध्यात् पुनरुयहम् ज्वरादि और अवयबों में होने वाले श्वित्रादि ___ अर्थ-तीनदिन विश्राम करके पुनवार । पूर्वोक्त रीतिसे तीनदिन तक उत्तर वस्तिका
रोग होते हैं | प्रयोग करें।
वस्तिको वायुका शमनत्व ।
विश्लेष्मापत्तादिमलाचयानांवस्ति देनेका नियम ।
विक्षेपसंहारकरःस यस्मात् । पक्षाद्विरेको वमिते ततःपक्षानिरूणम्।।
तस्याऽतिवृद्धस्य शमाय नान्यसद्योनिरूढश्चाऽन्वास्यासप्तरात्राद्विरेचितः द्वस्तेविना भेषजमस्ति किंचित् ॥८६॥ अर्थ- उत्तम वस्तिके प्रयोगसे वमन द्वा
अर्थ-पुरीष, कफ, पित्त, मूत्र खेदं रा अच्छीतरह शुद्ध होनेके पंद्रह दिन पीछे
आदि मलसमूहों का विक्षेपकर्ता, अर्थात् विरेचन, इसीतरह विरेचनसे पंद्रहदिन पीछे ।
फैलानेवाला और संहारकर्ता अर्थात् इकट्ठा निरूहण, निरूहण के दिन ही अनुवासन
करनेवाला वायु है, यह वायु जब अत्यन्त और विरेचनके एक सप्ताह पीछे अनुवासन | वढजाता है तब उसके शमन करने के लिये देना चाहिये।
वस्ति के सिवाय और कोई उपयुक्त औषध वस्तिका प्रयोजन ।
नहीं है। यथाकुसुंभादियुतात्तोयानागं हरेत्पटः।
वस्तिका महत्व । तथा द्रवीकृताहेहाद्वस्तिनिहरते मलान् ॥
तस्माविकित्सार्ध इति प्रदिष्टःअर्थ--जैसे वस्त्रको कसूमके रंगसे युक्त
कृत्स्ना चिकित्साऽपि च बस्तिरेकै। जलमें डबोनेसे वह केवल ललाई को ग्रहण
तथा निजागंतुविकारकारीकर लेता है । इसी तरह वस्ति भी धातु रक्तौषधत्वेन शिराव्यधोऽपि ॥ ८७ ॥
और मल द्वारा द्रवीकृत देहसे मल ही को अर्थ-दोषों में प्रधान वायुको वस्ति निकालती है।
शमन करती है, इसलिये कितने ही आचावायुका प्राधान्य। > वस्ति को सम्पूर्ण चिकित्साओं में आधा शाखागताः कोष्ठगताश्च रोगा- बतलाते हैं अर्थात् एक ओर संपूर्ण चिकि
For Private And Personal Use Only