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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२ बिषय विरेचन का अयोगायोग लक्षण विरेचन के अतियोग का लक्षण विरेचन के पीछे का उपचार औषधि सेवनान्तर उपनावादि संशोधन के पीछे पेयादि पेयादि कृम के अयोग्य रोगी औषधि के वचने की अनावश्यकता वमन विरेचन की विरुद्धता में कर्त्तव्य स्वतः विरेचन का उपचार दुर्बल की औषधि दुर्बल के अल्पदोष की चिकित्सा मंदाग्नि और कूट कोष्ट का शोधन रूक्षादि का विरेचन एकोनविंशोऽध्याय | www.kobatirth.org नेत्र की दवाई नेत्र की मु नेत्र के छिद्र का प्रमाण अष्टांगहृदयकी पृष्टांक, | विषय १६३ नेत्र काका आदिकी योजना वस्तिके अभाव में कर्तव्य निरूहवस्ति की मात्रा अनुवासनवस्तिकी मात्रा अनुवासन का प्रकार बस्ति प्रयोग की विधि वस्ति के पीछे की क्रिया स्नेह निवृति स्नेह निवृति के पीछे का कर्म 93 23 अनुवासन का काल निरूह का काल निरूह की कल्पना 33 १६४ | दोष परता में स्नेह का प्रमाण 59 33 33 33 "" १६५ "" 35 "" पथ्य का कारण विष पीडित व्यक्ति का विरेचन बिरेचन का प्रकार स्नेहादि का बार बार प्रयोग अनुवासन देने का काल 33 अनुवासित के लक्षण शोधन औषध द्वारा मलका निकालना १६६ अनुवासन का सम्यकू योग स्नेह स्वेद विना शोधन से हानि 23 संशोधन का फल अनुवासन की संख्या अनुवास्तनवस्ति वाले का भोजन बातरोग में वस्ति पित्तरोग में वस्ति 25 १६७ कफरोग में वस्ति वस्ती के भेद निरुण वस्ती के अयोग्य रोगी अनुवासन के योग्य रोगी निरूह तथा अन्वासन यंत्र के लक्षण, 33 "" 33 "5 "" १६९ 33 १६८ | अन्य कारण "" "" स्नेह निवृति का काल स्नेह के न निकलने पर कर्त्तव्य 33 अन्य नियमादि वस्ति की योजना 33 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 33 सन्निपात में वस्ति चौथी बस्ति का निषेध उपसंहार मात्र वस्ति के लक्षणादि 55 १७१ | उत्तर वस्ति का विधान उभयपक्ष में प्रमाणत्व पृष्ठाक; अन्यमत निरूहण के पीछे का कर्म निरूह की अवधि 33 स्वयं निरूह के निकलने पर कर्त्तव्य १७४ निरूह के लक्षण और पथ्यादि For Private And Personal Use Only 33 उत्तर वस्ति के नेत्र का परिमाण उत्तर वस्ति की मात्रा उत्तर वस्ति के प्रयोग की विधि 22 १७२ ."" १७६ 33 33 १७३ ."" 33 " ," "" "" 29 १७५ 33 33 "" "3 "" ग्रंथकार का मत कर्म वस्तियों की संख्या काल वस्ति तथा योग वस्ति 55 एक प्रकारकी वस्तिओंके सेवनका योग,, "" 19 १७६ "" 39 33 १७७ 39 "" 39 33
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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