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अ ११
सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत ।
(१०१)
कायाका व्यापार ), वेगप्रवर्तन ( मलमूत्र
मलका कर्म अधोवायु आदि का शरीर से बाहर निका- | अवष्टंभः पुरीषस्य मूत्रस्य क्लेदवाहनम् । लना, धातुओं की सम्यक् गति, संपूर्ण इ.
स्वेतस्य क्लेदविधृतिः। न्द्रियों की पटुता इन कर्मों को करता हुआ
___ अर्थ-पुरीब का कर्म देह को धारण अविकृत वायु शरीर पर उपकार करता है
करना, मूत्र का कर्म भीतर के छेद को बाहर इसीतरह अविकृत अर्थात् विनाविगडा हुआ
निकालना और पसीनों का काम क्लेद धापित्त परिपाक, ऊष्मा (शरीरोष्मा धातू
रण करना है क्योंकि जो शरीरमें क्लद न
रहे तो त्वचा सूखी और रूखी होजाती है मा, और जठराग्नि ) पहुंचाना, दृष्टिशक्ति,
केश और रोमों का धारण करना ये पसीनों क्षुधा, तृषा, रुचि, कांति, निश्चयात्मिका
| का काम है। बुद्धि, ज्ञानात्मिका बुद्धि, पौरुष और देह में
वृद्धवायुका कर्म । मृदुता इन कर्मो को करता हुआ शरीर पर
__ वृद्धस्तु कुरुतेऽनिलः। उपकार करताहै । इसी तरह अविकृत कफ कार्यकाय?ष्णकामित्वकंपाऽनाहशकुनहान देह में स्थिरता, स्निग्धता संधिवन्धन और बलनिनेंद्रियभ्रंशप्रलापभ्रमदीनताः ॥ ६॥ क्षमा उत्पन्न करके शरीर पर उपकार कर
___अर्थ-बायु बढने पर शरीर को कृश
करदेती है, देह का रंग काला करती है, . धातुका कर्म ।
गरम पदार्थो में रुचि वढाती है, कंपन, प्रीणनं जीवन लेपः स्नेहो धारणपूरणे ।। अफरा, मलकाअवरोध, वलका नाश, निद्रागर्भोत्पादश्च धातूनां श्रेष्ठं कर्मक्रमात्स्मृतम्
| नाश, करती है, प्रलाप भ्रम और दीनता अर्थ-रसादि सात धातुओं के क्रमपू.
| इनको भी उत्पन्न करती है। र्वक प्रीणनादि सातकर्म हैं । इनमें से भो
वृद्ध पित्तका कर्म । जन करने से उत्पन्न हुआ रस इन्द्रियगणों में प्रविष्ट होकर उनको निर्मल करता हुआ
| पीतविण्मूत्रनेत्रत्वक्क्षुत्तृड्दाहाऽल्पनिद्रताः
पित्तम् मनमें प्रीणन अर्थात् तृप्ति करता है । रुधिर
| अर्थ-पित्त बढने पर मल,मूत्र, नेत्र का कर्म जीवन अर्थात् प्राणधारण है। और त्वचा को पीला करदेता है, क्षुधा, मांस का कर्म लेपन, बल और पुष्टि है।
तृषा दाह और अल्पनिन्द्रा भी करता है । मेद का कर्म स्निग्धता अर्थात् तैल मर्दन की तरह देह में चिकनापन करना है अ.
वृद्ध कफकाकर्म ।
श्लेष्माऽग्निसदनप्रसेकालस्यगौरवम् ॥७॥ स्थिका कर्म देह धारण है । मज्जा का कर्म । त्यशैत्यश्लथांगत्वं श्वासकासातिनिद्रताः। छिन्द्रों का पूरण करना और वीर्यका कर्म अर्थ-कफ बढने पर जठराग्नि को मंद गर्भोत्पादन है । धातुओं के ये श्रेष्ठ क्रम से प्रसेक ( मुख से लार टपकना ) आलस्य, कहे गये हैं।
भारापन, त्वचामें श्वेतता, शीतलता, शरीर
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