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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टांगहृदये। अ० १० अग्निमांद्य, सन्यास, प्रमेह, गंड, अर्बुद | तिक्तरस के गुण। आदि रोगों को करता है। तिक्तः स्वयमरोचिष्णुररुचिं कृमितृ बिषम् ॥ अम्लरस के गुण । कुष्टमूच्र्छाज्वरोत्क्लेशदाहपित्तकफान् जयेत् अम्लोऽग्निदीप्तिकृत्निग्धो हृद्यः पाचनरोचनः कलेदोदोवसामजशकुन्मत्रोषशोषणः॥१५॥ उष्णवीयों हिमस्पर्शःप्रीमनो भेदनो लछः१० लघुसंध्या हिमो कक्षा स्तन्यकंठविशोधनः । करोति कफपित्तात्रं मूढवातानुलोमनन । धातुक्षयाऽनिलव्याधीनतियोगात्करोति सः सोऽत्यभ्यस्तस्तनो कुर्याउछैथिल् तिमिरंशसम अथे-तिक्तरस स्वयं अरोचनशील है । कंडुपांडुत्ववीसर्पशोफविस्फोटतडज्वरान् ।। परन्तु अरुचि को दूर करता है । यह कृमि अथे-अम्लरस अग्नि संदीपन, स्निग्ध, तृष्णा, विष, कुष्ठ, मूच्छो, ज्वर, उक्लेश हृदय को हितकारी, पाचन, रोचन, उष्ण- (जी मचलाना ) दाह, पित्त और कफको वर्य्यि, स्पर्श में शीतल, प्रणिनकर्ता, भेदी । दूर करता है । यह क्लेदता, मेद, वसा, और हलका है । कफ और रक्त पित्त को मज्जा, मल और मूत्र का शोषक है । तथा करता है। और कुपथगामी वातको अपने यह लघु, मेधोत्पादक, हिम, रूक्ष, दूध का मार्ग पर लेआता है । इसका अधिक सेवन शोधन करनेवाला कंठको शुद्ध करनेवालाहै । देह में शिथिलता, तिमिररोग, भ्रम, कंड। इसका अत्यन्त सेवन करने से धातुक्षय और पांडुरोग,बिसर्प, सूजन,विस्फोटक,तष्णा और । वात व्याधियां उत्पन्न होती है। ज्वर इनको उत्पन्न करता है । टुरस के गुण ।। लवणरस का गुण । कलासयोदईकुछालसकशोफजित् । लवणः स्तंभसंघातभविष्मायनोऽसित १२ बणावसादनमोहमेदकलेदोपशोषणः॥१७॥ लेहनः स्वेदजस्तीगो रोचनश्छेदभेदकृत। दापनामावनो रुच्याशोधनोऽस्य शोषणः। सोऽतियुक्तोऽत्रपयनं खलति पलितं पलिम् छिनतिबंधान स्रोतांसि विवृणोति कफापहः। तृकुष्ठधिषवीसान् जनयेत्क्षपयेवलम् । | कुरुते सोऽतियोगेन तृष्णां शुक्रवलक्षयम्९ अर्थ-लवणरस खाये हुए द्रव्यमें स्तब्ध मुर्छामासुजन कंप काटिपृष्टादिषु व्यथाम्१ अर्थ-कटुरस कण्ठरोग, उदर्द, कुष्ठ, ता, संघात, मलादि की प्रबलता को नष्ट अलसक और शोफको दूर करता है । घाव करता है, यह अग्निसंदीपन, स्नेहजनक, को भरताहै । स्नेह, मेद और क्लेदको सुखा पसीना लानेवाला, तीक्ष्ण, रोचक, प्रन्थि आदि का छेदन करनेवाला और भेदक है । देताहै । यह अग्निसंदीपन, पाचन, रुचि. इसके अत्यन्त सेवन करने से वातरक्त, कर्ता, शोधक और अन्न का शोषणकर्ता है खलित (बालोंका गिरना ) पलित । यह मलकी विवद्धता को दूर करता है । ( कुसमय बालोंका सफ़ेद होना ) बलि स्रोतों को खोलता है और कफनाशक है । ( देहकी त्वचा में झुरीं पड़जाना ) तृषा इसका अत्यन्त सेवन करनेसे तृषा, बलक्षकोढ़, विपरोग, विसर्प, इन रोगोंको उत्पन्न य,मुर्छा अंगसकाच, कंगन, कमर और पीठमें करता है तथा बलको क्षीण करता है। दई उत्पन्न होताहै ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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