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अष्टांगहृदये।
अ. ८
बिलंविका रोग की उत्पत्ति । । यन करना चाहिये । दिन में विना कुछ गायिसोभवेल्लीनादामादेव विलंविका । भोजन कराये शयन कराना उत्तम है उठने कफवातानुबद्धामलिंगा तत्समसाधना।२८।
के पीछे जो रोगी को क्षुधा लगे तो थोडा अर्थ-स्रोतों में अत्यन्त श्लिष्ट हो जा
हलका भोजन करावै । ने से विलंबिका नामक व्याधि उत्पन्न हो जाती है, यह व्याधि कफ और बातसे युक्त
____ अजीणं के सामान्य लक्षण । होती है और इसमें आगार्णि के सब लक्षण
विबंधोऽतिप्रवृत्तिर्वा ग्लानिमारुतमढता ३०
अजीर्णलिंगं सामान्यं विष्टंभो गौरवं भ्रमः । प्रगट होते हैं,जैसे आंख और गंडस्थलमें सुजन
___ अर्थ-मल मूत्रादि की विवद्वता वा अति भुक्तअन्न की डकार, प्रसेक, उक्लेश और
प्रवृत्ति, शरीर की ग्लानि वायुकी मूढता गौरव आदि । इस में आमानीर्ण के समान अर्थात प्रतिलोमभाब में पेट के भीतर वाही चिकित्सा करनी चाहिये जैसे लंघना
युका इधर उधर भमण, विष्टब्ध ( भुक्तअन्न दि। पर इस वातपर विशेष ध्यान धरना
| का गोलासा वनकर ठहर जाना ), शरीर चाहिये कि आमा जीर्ण में तो केवल कफ
में भारापन और भ्रम ये सब अजीर्ण के होता है और विलंविका में वायु और कफ
सामान्य लक्षण हैं । दोनों का अनुबंध होता है, इसलिये कफ वातनाशक औषध का प्रयोग विवेचना अजीर्णके अन्य हेतु । पूर्वक करना चाहिये ।
न चातिभात्रमेवान्नमामोषाय केवलम् ।३१॥ रसशेषाजीर्ण के लक्षण ।
द्विष्टाविष्टंभिदग्धामगुरारूक्षहिमाशुचि ।
विशाही शुष्कमयं त्रुप्लुतं वान्नं न जीर्यति ३२ अश्रद्धा हृयथा शुद्ध पारे रसशेषतः। शयीत किंचिदेवात्र सर्वश्वानाशितोदिया ।
उपतप्तेन भुक्तं च शोककोधक्षुधादिभिः। स्वप्यादजीर्णीसजातबुभुक्षोऽद्यान्मिन लधु। ___अर्थ-केवल अतिमात्र भोजनही आम
अर्थ-भुक्तान्न का रस धात्वानि द्वारा दोषका कारण नहीहै । किन्तु अप्रिय, विपरिपाक को प्राप्तहोकर रक्तरूप में परिण- टभी, दग्ध, अपक्क, गुरुपाकी, रूक्ष, शीतल त होता है उसी में से कुछ भाग अग्निकी अपवित्र, विदाही, शुष्क और बहुत जलसे दुर्वलता के कारण पाकको प्राप्त न हो औ- मिला हुआ अन्न भी परिपाक को प्राप्त न र कुछ बचरहे उसीका नाम रसशेष है । होकर अर्जीर्ण करताहै । अजीर्णके केवल इसीलिये रसशेषसे जो अजीर्ण होता है। यही कारण नहीं है किन्तु शोक, क्रोध, भूख उसेही रसशेषाजीर्ण कहते हैं । इसमें दु- भूखके समय अन्नका न मिलना भादि गैधित वा खट्टी डकार नहीं आती है किन्तु । कारणोंसे भी उत्तप्त मनुष्यका खाया हुआ आहार में अनिच्छा और हृदय में शूल हो । अन्न नहीं पचताहै । आदि शब्दसे लोभ ता है । ऐस रोगी को थोडी देर तक श- भय आदिभी जानना चाहिये ।
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