SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६४) अष्टांगहृदये । अ०६ - फलवर्ग - द्राक्षा। अर्थ- केला, खिजूर, पनस, नारियल, द्राक्षाफलोत्तमावृष्याचक्षुण्यासृष्टमूत्रविट्। फालसा, आम्रात, ( अंबाडा ), तालफल, स्वादुपाकरसास्निग्धासकषायाहिमागुरुः । खंभारी, खिरनी, महुआफल, बडाबेर, छोटा निहंस्यनिलपितास्नातक्तास्यत्वमदात्ययान् । तृष्णाकासश्रमश्वासस्वरभेदक्षतक्षयान् ११६ बेर, अंकोल, काकोडुम्बर, बादाम, पिस्ता, . अर्थ.. सब फलोंमें दाख उत्तम होताहै, अखरोट, दंडफिल, निकोचक, चिरोंजी, ये यह बीर्यजनक, नेत्रपक्षमें हितकारी. मलमू- सब कल वृंहणकर्ता, भारी और शीतल है | प्रनिः साकारक, पाक रसमें मधुर, स्निग्ध, दाह, क्षत, औरं क्षयको दूर करतेहैं । रक्तकुछ कसीली, शीतवीर्य और भारी है । | पित्तको दूर करतेहैं । पाक और रसमें मधुर यह वात, रक्तपित्त, मुखका कडवापन, मदा होतेहैं, स्निग्ध और विष्टंभी है तथा कफ त्यय,तृषा, खांसी थकावट, श्वास, स्वरभेद, और वीर्यको बढानेवाले हैं। क्षतरोग, और क्षयी, इन रोगोंको दूर करने तालफलादिके गुण । वालीहै । फलन्तु पित्तलं तालं सरं काश्मर्यजं हिमम् ॥ शकृन्मूत्रीवंबधघ्नंकेश्यमेध्यंरसायनम् ११२ . अनारके गुण । वातामादयुष्णवीर्यतुकफपित्तकरंसरम् । उद्रिक्तपित्ताञ्जयतित्रीन्दोषान्स्वादुदाडिमम् परंवातहरंस्निग्धमनुष्णंतुप्रियालजम् ॥१२३॥ पित्ताविरोधि नात्युण्णमुण्णं वातकफापहम्। प्रियालमजामधुरोवृष्यः पित्तानिलापहः । सर्व हृद्यं लघुस्निग्धं ग्राहि रोचनदीपनम् ॥ | कोलमजागुणैस्तद्वतृडछर्दिकासजिच्चसः ___ अर्थ- मीठा अनार पित्तकी अधिकता अर्थ- तालफल पित्तकर्ताहै । खंभारी याले तीनों दोषोंको जीतताहै। खटटा फल मलनिःसारक, शीतवीर्य और मलमत्र अनार न तो पित्तको शमन करताहै न पैदा की विवन्धता को दूर करताहै । केशवर्द्धक, करताहै, अत्यन्त उष्ण नहींहै, वात और वुद्धिवर्द्धक और रसायनहै । वादाम आदि कफको दूर करताहै | सब प्रकारके अनार । फल उष्णवीर्य, कफपित्तकारक, मलनिःसाहृदयको हितकारी, हलके, स्निग्ध, ग्राही, रक,अत्यन्त वायुनाशक और स्निग्धहै । पि. रुचिकर्ता और अग्निसंदीपन होतेहैं । याल फलकी मिंगी मधुर, वीर्यजनक, तथा . मोचफलादि । पित्त और वातनाशकहै । बेरकी गिरी पिमोचखरिपनसनालिकेरपरूपकम् ॥ यालकी गिरीके तुल्य गुणकारीह तथा तृषा, आम्राततालकाश्मर्यराजादनमधूकजम् ॥११८ वमन और खांसी को दूर करती है । सौवीरबदरांकोलफल्गुश्लेष्मांतकोद्भवम् ॥ बेलगिरीके गुण । वातामाभीषुकाक्षोडमुकूलकनिकोचकम् ॥ उरुमागं प्रियालश्च बृंहणं गुरु शीतलम् ॥ "पक्कंसुदुर्जरविल्वंदोषलंपूतिमारुतम् । दीपनंकफवातघ्नं बालंग्रा युभयहितत् ।१२५। दाहक्षतक्षयहरं रक्तपित्तप्रसाइनम् ॥११९॥ स्वादुपाकरसं स्निग्धं विटम्भिकफशुभकृत अर्थ- पकीहुई बेलगिरी दुष्याच्य होती है For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy