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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म.६ सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत । नेत्ररोग, वीर्यरोग, और कृमिरोगको दूर कर । पलांडु के गुण । ने वाले हैं । तीक्षण होने से वातादि दोषों पलांडुस्तद्गुणन्यूनःश्लेष्मलोनाऽतिपित्तलः॥ को उक्लेदित करते है और हलके हैं ।।। | कफवातार्शसांपथ्यः स्वेदेभ्यवहृतौतथा। अर्थ-प्याज लहसनकी अपेक्षा गुणों में तुलसी के गुण । न्यून होती है, यह कफकारक और पित्तोहिमकासश्रमश्वासपावरुरूपूतिगंधहा१०७ वादक है। यह कफ वात और अर्श रोगी सुरसःसुमुखोनातिविदाहीगरशोफहा। लिये पसीना देने और खाने में हित अर्थ-काली, तुलसी हिचकी, खांसी, माती। थकावट, श्वास, पसलीका दर्द, और दुर्गन्धि गाजर के गुण । को दूर करती है । छोटे पत्तेधाली तुलसी तीक्ष्णागूजनकोग्राहीपित्तिनांहितकृन्नसः ११२ कुछ विदाही बिषरोग और सूजन को दूर अर्थ-गाजर तीक्ष्ण और ग्राही है तथा करती है। पित्त व्याधि वालों को हितकारी नहीं है। हरे धनिये का गुण । जमीकंद के गुण । आर्दिकातिक्तमधुरामत्रलानचापित्तकृत १०८ | दीपनःसूरणोरुच्याकफघ्नोविशदोलघुः । ___ अर्थ-हराधनियां कुछ कडवा, मधर. विशेषादर्शसांपथ्यः भूकंदस्त्वतिदोषलः११३ मूत्रवर्द्धक और पित्त कारक है। अर्थ-जकिंद अग्निसंदीन, रुचिकर्ता, लहसन के गुण । कफनाशक, निर्मलकारक, हलका और लशुनोभृशतीक्ष्णोष्ण कटुपाकरसःसरः। बवासीर वालों को बड़ा हितकारी है । भूहृद्यःकेश्योगुरुर्वृष्यःस्निग्धोरोचनदीपनः १०९ कन्द वातादिक दोष को बहुत प्रकुपित भग्नसंधानकृद्धल्योरक्तपित्तप्रदूषणं। करता है। किलासकुष्ठगुलमाऽशोंमेहक्रिमिकफानेलान् | सहिमपीनसश्वासकासान्हतिरसायनम् । पोष्पेफलेनालेकंदचगुरुताक्रमात्। पत्ते आदि के गुण । अर्थ-लहसन अत्यन्त तीक्ष्ण और उष्ण अर्य-पत्रशाक से पुष्यशाक इस से फलशा. वीर्यहै , पाक और रसमें कटुहै, मलनिःसा- ! क, फलशाक से नालशाक ( डंडियों का रकहै हृद्यहै, केशों के लिये हितकारी, भारी, शाक ), और नालशाक से कन्दशाक क्रम वीर्योत्पादक, स्निग्ध, रुचिकारक, अग्निसंदी. से उत्तरोत्तर भारी होते हैं। पन, किलास, कोट, गुल्म, अर्श, प्रमेह, शाकों में वरावरत्व । कृमिरोग, कफ, बात, हिचकी, पानस, श्वास वराशाकेषुजीवंतीसर्षपास्त्ववर-परम्॥११॥ खांसी, इन सब रोगों को दूरकरता है तथा अर्थ-सब शाकों में जयंती अर्थात् जेंरक्तपित्त को उत्पन्न करता है । अन्य प्रन्थ ती का शाक सर्वोत्तम और सरसों का शाक में लिखाहै कि यह टूटी हड्डीको जोड देताहै) अत्यन्त बुरा होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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