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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५२) अष्टांगहृदये। अ०६ नये धान्यादि । ली है, यह हितकारी, अग्निसंदीपन और नवंधान्यमभिष्यंदि लघुसंवत्सरोषितम् । पाचनकर्ता है । चौगुने पानी में छांवल शीघ्रजन्मतथासूप्यनिस्तुषंयुक्तिभर्जितम् २४ | उबाल कर पतला कांजी के समान चिक__ अर्थ--नवीन अन्न श्लेष्मा को बढाता नाई लिये हुए पानी सा निकाला जाता है है, वही अन्न एक बरस का होनेपर हलका | उसे पेया कहते हैं । होजाता है । जो थोड़े ही काल में तयार हो विलेपी के गुण । जाते हैं और जिनसे दाल वनती है ऐसे विलेपीग्राहिणीबद्यातृष्णानीपिनाहिता। धान्य हलके होते हैं । तथा जिनके छिलके वणाक्षिरोगसंशुद्धदुर्घलनेहपायिनाम् ॥२८॥ दूर करके युक्ति पूर्वक भूने जाते हैं वे भी अर्थ- विलेपी संग्राही, हृदयको हितकाहलके होते हैं । री, तृष्णा को दूर करनेवाली, अग्निसंदीमण्ड के गुण । | पनी, और हितकारी होती है । अण, नेत्रमंडपेयाविलेपानामोदनस्यचलाघवम्। रोग, वमनविरेचनादि से शुद्ध किये हुए के यथापूर्वशिवस्तवमंडोवातानुलोमनः ॥ २५॥ लिये, दुर्बल के लिये और जिसको स्नेह तृडग्लानिदोषशेषनःपाचनोधातुसाम्यकृत् । स्रोतोमादेवकृत्स्वेदीसंधुक्षयतिचानलम् २६ पान कराना हो उस के लिये हितकारी है । अर्थ- मंड, पेया, बिलपी और भात इनमें भात के गुण। पूर्व पूर्व हलके होतेहैं अर्थात् भातसे विलेपी | सुधौतःप्रसुतःस्विन्नोऽत्यक्तीष्माचोदनोलघुः इससे पया, पेयासे मंड हलका होताहै । इन यश्चाग्नेयौषधक्काथसाधितोभ्रष्टतंडुलः।२९। विपरीतो गुरुः क्षीरमांसाधैर्यश्च साधितः। में से मंड अत्यन्त हितकारक और वायु का अर्थ--अच्छी तरह से धोये हुय चांवअनुलोमन कर्ता है । तृषा, ग्लानि, दोष लों को धिकार लों को रांधकर उनका मांढ निकाल डाले, और शोष को हरता है । धातुओं को समा- ऐसा भात जो विलकुल टंडा न होगया हो नावस्था पर लानेवाला है । मल मूत्रादि के | हलका होता है । जो चित्रादिक गरम औस्रोतों को मृदु करता है । पसीने लाता है | षधों के संग भात बनाया जाता है वह और जठराग्नि को बढाता है । जो बहुत हलका होता है । सेके हुए चांबिल्कुल पानीसा होताहै उसे मंड कहते हैं। वलों का भात उससे भी हलका होता है । पेया के गुण । | जो दूध वा मांसादि के साथ पकाया जाता क्षुतृष्णाम्लानिदौर्बल्यकुक्षिरोगज्वरापहा। है वह इससे भी विपरति अर्थात् भारी मलानुलोमनीपथ्यापेयादीपनपाचनी ॥२७॥ होता है । अर्थ-पेया भूख, तृषा, ग्लानि, दुवर्लता, इतिद्रब्यक्रियायोगमानाद्यैःसर्वमादिशेत् ।३०। कुक्षि के रोग और ज्वर को दूर करती है, अर्थ-इस तरह द्रव्य, क्रिया, योग, बातादिक दोषों को अपने मार्ग पर लानेवा- और परिमाणादि द्वारा अन्न में हलकापनवा For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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