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अष्टांगहृदये।
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नये धान्यादि ।
ली है, यह हितकारी, अग्निसंदीपन और नवंधान्यमभिष्यंदि लघुसंवत्सरोषितम् । पाचनकर्ता है । चौगुने पानी में छांवल शीघ्रजन्मतथासूप्यनिस्तुषंयुक्तिभर्जितम् २४ | उबाल कर पतला कांजी के समान चिक__ अर्थ--नवीन अन्न श्लेष्मा को बढाता
नाई लिये हुए पानी सा निकाला जाता है है, वही अन्न एक बरस का होनेपर हलका |
उसे पेया कहते हैं । होजाता है । जो थोड़े ही काल में तयार हो
विलेपी के गुण । जाते हैं और जिनसे दाल वनती है ऐसे
विलेपीग्राहिणीबद्यातृष्णानीपिनाहिता। धान्य हलके होते हैं । तथा जिनके छिलके
वणाक्षिरोगसंशुद्धदुर्घलनेहपायिनाम् ॥२८॥ दूर करके युक्ति पूर्वक भूने जाते हैं वे भी अर्थ- विलेपी संग्राही, हृदयको हितकाहलके होते हैं ।
री, तृष्णा को दूर करनेवाली, अग्निसंदीमण्ड के गुण । | पनी, और हितकारी होती है । अण, नेत्रमंडपेयाविलेपानामोदनस्यचलाघवम्। रोग, वमनविरेचनादि से शुद्ध किये हुए के यथापूर्वशिवस्तवमंडोवातानुलोमनः ॥ २५॥ लिये, दुर्बल के लिये और जिसको स्नेह तृडग्लानिदोषशेषनःपाचनोधातुसाम्यकृत् । स्रोतोमादेवकृत्स्वेदीसंधुक्षयतिचानलम् २६
पान कराना हो उस के लिये हितकारी है । अर्थ- मंड, पेया, बिलपी और भात इनमें
भात के गुण। पूर्व पूर्व हलके होतेहैं अर्थात् भातसे विलेपी | सुधौतःप्रसुतःस्विन्नोऽत्यक्तीष्माचोदनोलघुः इससे पया, पेयासे मंड हलका होताहै । इन
यश्चाग्नेयौषधक्काथसाधितोभ्रष्टतंडुलः।२९।
विपरीतो गुरुः क्षीरमांसाधैर्यश्च साधितः। में से मंड अत्यन्त हितकारक और वायु का अर्थ--अच्छी तरह से धोये हुय चांवअनुलोमन कर्ता है । तृषा, ग्लानि, दोष लों को धिकार
लों को रांधकर उनका मांढ निकाल डाले, और शोष को हरता है । धातुओं को समा- ऐसा भात जो विलकुल टंडा न होगया हो नावस्था पर लानेवाला है । मल मूत्रादि के | हलका होता है । जो चित्रादिक गरम औस्रोतों को मृदु करता है । पसीने लाता है | षधों के संग भात बनाया जाता है वह
और जठराग्नि को बढाता है । जो बहुत हलका होता है । सेके हुए चांबिल्कुल पानीसा होताहै उसे मंड कहते हैं। वलों का भात उससे भी हलका होता है ।
पेया के गुण । | जो दूध वा मांसादि के साथ पकाया जाता क्षुतृष्णाम्लानिदौर्बल्यकुक्षिरोगज्वरापहा। है वह इससे भी विपरति अर्थात् भारी मलानुलोमनीपथ्यापेयादीपनपाचनी ॥२७॥ होता है ।
अर्थ-पेया भूख, तृषा, ग्लानि, दुवर्लता, इतिद्रब्यक्रियायोगमानाद्यैःसर्वमादिशेत् ।३०। कुक्षि के रोग और ज्वर को दूर करती है, अर्थ-इस तरह द्रव्य, क्रिया, योग, बातादिक दोषों को अपने मार्ग पर लानेवा- और परिमाणादि द्वारा अन्न में हलकापनवा
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