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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत । अ० ६ कषायंस्वादुसंग्राहिक रूपाकांहिमंलघु । मेदःश्लेष्मास्त्रवित्तेषुहितंलेपोपसेकयोः ॥ १६ ॥ अर्थ- मूंग, अडहर, मसूर आदि शिंबीधान्य विबंधकारक होतेहैं | ये कसेले, म धुर. संग्राही, कटुपाकी, हिम और लघु हो ते हैं । तथा मंद, कफ, रक्त पित्तादिमें हिसकारक हैं, तथा लेप और उपसेक में काम आते हैं । । मूंग लाभ | बरोsaniseपचलः कलायस्त्वपिवातलः राजमाषोऽनिलकरूक्षोवदुशकृद्ररुः ॥ १७ ॥ अर्थ - शिवी धान्यों में मूंग सबसे उत्तम है, यह अल्प वायुकारक है । मटर अत्यन्त वायुकती है । चीला वायुकर्ता, रूक्ष, बहू मलजनक और भारी होता है । कुलीका गुण | उष्णाः कुलत्थापा केऽम्लाः शुक्राश्मश्वासपीन सानकासार्शःकफवातांश्चघ्नतिपित्ताश्रदाः परं अर्थ - कुलथी उष्णवीर्य, अम्लपाकी, और वीर्य, पथरी, श्वास, पीनस, खांसी, बवासीर, कफ और वातको दूर करती है और रक्तपित्तको बहुत वढाती है । राजशिवीके गुण | निष्पावोवातपित्तास्नस्तन्यमुत्रकरो गुरुः । सरोविदशहीदकशुक्रकफशोकविषापहः ॥ १९ ॥ -अर्थ- मौठ, वायु, पित्त, रुधिर, दूध और मूत्रको बढाती है, भारी और रेचक है पाक के समय विदाह करती है, नेत्र, वीर्य, कफ, सूजन, और विषदोषका नाश करती है । उदके गुण | माषः स्निग्धोबळ श्लेष्म मलपित्तकरःसरः । ( ५१ ) गुरूष्णोऽनिलहास्वादुः शुक्रवृद्धिविरक कृत् अर्थ - उर स्निग्ध है तथा वल, कफ, मल और पित्तको उत्पन्न करता है, तथा रेचक, गरम, भारी, वायुनाशक, मधुर, बीर्यवर्द्धक और वीर्यनिःसारक है । कटभी और कोंचके गुण | फलानिमापवद्विद्यात्काकांडोलात्मगुप्तयोः । अर्थ-कभी और कोंच के फल उरद के समान गुणकारी होते हैं । तिलके गुण | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उष्णस्त्वच्याहिमःस्पर्शेकेश्योबल्यास्तिलोगुरुः अल्पमूत्रकटुः पाकेमेधाऽग्निकफापसकृत् । अर्थ - - तिल गरम तथा शरीरको त्वचा को हितकारी होता है, स्पर्श में शीतल है । केशों को हितकारी, बलवर्द्धक और भारी होताहै, मूत्रको कम करता है, पाकके समय कटु होता है, बुद्धि, जठराग्नि, कफ और पित्तको बढानेवाला है । अलसी और कसूम के बीजके गुण । स्निग्धोमास्वादुतिक्तोष्णाकफपित्तकरगुरुः Chशुक्रहुत्कटुःपाके तद्वद्वजिंकुसुंभजं । अर्थ - अलसी स्निग्ध, मधुर, तिक्त, उष्णवीर्य, कफोत्पादक, और पित्तकारक नेत्र और वीर्यको हानि पहुंचाने वाली है तथा पाक में कटु है । कसूमके बीज के गुण भी अलसीके समान होते हैं । मात्रसर्वे ववयवकः शुकजेषुच ॥ २३॥ अर्थ- शिम्बी धान्योंमें उरद और शूक धान्यों में यवक सबसे निकृष्ट होते हैं । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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