________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत ।
अ० ६
अर्थ-रक्त शालि ( दाऊदैवानी ), 7हा शालि (राम शालि ), कलम, तूर्णक ( आजव ), शकुनाहृत, कृष्णशूक, दीर्घशुक, लोधक, सुगन्धक, पुंडरीक, प्रमोदी, गौरशालि, जांगल, छोहवाल, कर्दम, शीतभीरु, पतंग और तपनीय आदि अन्य प्रकार
शालि धान्य भी हितकर, मधुर पाक और मधुररसयुक्त, स्निग्ध, शुक्रजनक, बद्ध और अल्प मलकारक, ईषत्कषाय, पथ्य, लघु, मूत्रकारक और शीतल होते हैं ।
भिन्न २ देशों के अनुसार चांवलोंके अनेक भेद होते हैं और उनके नाम भी जुदे२ हैं । इनमें से कलम नामक विहार प्रान्त में होता है । महाशालि और तूर्णक काश्मीर में, 'शकुनाहृत भी बिहार प्रान्त में होते हैं । इस के विषय में यह कहा गया है कि वुद्धदेव के उत्पन्न होने के समय हंस इनको चोंचमें दाबकर ले आये थे, इनको बोनेसे बड़ा विस्तार हुआ, इसीलिये इनको शकुनाहृत वा हंसराजभी कहते हैं ।
( ४९ )
अन्य चविलों के गुण । यवका हायनाः पांसुवाष्पनैषधकादयः ४ ॥ स्वादूष्णागुरवः स्निग्धाः पाकेऽम्लाः श्लेष्मपित्तलाः । समूत्रपुरीषाश्च पूर्व पूर्व च निंदिताः ॥
अर्थ - यवक, हायन, पांनु, वाष्प, नैधक, आदि चांवल मधुररस युक्त, उष्णवीर्य, भारी, स्निग्ध, अम्लपाकी, कफपित कारक, मलमूत्रनिःसारक होते हैं । ये पूर्व पूर्व निन्दित होते हैं अर्थात् यत्रक जाति के चावल सब में गुणहीन होते हैं ।
साठी चांवल के गुण । स्निग्धो ग्राही लघु स्वादुत्रिदाषघ्नःस्थिरोहिमः षष्टिकोब्राहिषु श्रेष्ठो गौरवासितगौरतः ६ ॥
अर्थ - श्रीहिधान्यों में साठीचांवल सर्वोत्तम होता है । साठीचांवल दो प्रकार का होता है गौर और कृष्णगौर । इनमें गौर उत्तम होता है । यह स्निग्ध, प्राही, भारी, मधुर, त्रिदोषनाशक, शरीर को स्थिर करने वाला और शीतवीर्य होता है ।
चावलों के गुण |
शुकजेषु वरस्तत्र रक्तस्तृष्णा त्रिदोषहा ३ ॥ महांस्तस्यानुकलमस्तं चान्यनुततः परे । अर्थ-3 - ऊपर जो सब प्रकार के शूकधान्य कहे हैं उनमें रक्तशालि सत्र में श्रेष्ठ होते हैं, ये तृषाको दूर करते हैं और त्रिदोष नाशक होते हैं । रक्तशालि की अपेक्षा महाशालि हीनगुण होता है, महाशालि की अपेक्षा कलम, कलमकी अपेक्षा तूर्णक आदि उत्तरोत्तर गुणों में हीन होते हैं ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ataलों की अन्य जाति । ततः क्रमान्महाव्रीहिकृष्णग्राहिजलूमुखः । कुक्कुटांड कपालाख्य पारावतकशूकराः ७ ॥ वरकोद्दालको ज्वालचनिशारददुर्दराः गंधनाः कुरुविंदाश्च गुणैरल्पांतराः स्मृताः ॥
I
अर्थ -साठी चांवलोंसे महाब्रीहि, कृष्णव्रीहि, जतुमुख, कुक्कुटांड, कपाल, पारावतक, शुकर, वरक, उद्दालक, ज्वाल, चीनी, शारद, दर्दुर, गंधन, कुरुविन्द, ये उत्तरोत्तर गुणों में हीन हैं । इनके भिन्न२ नाम आकृति और देश भेदेसे पड़ गये हैं । पाटलके गुण । स्वादुरम्लविपांकोऽन्यो व्रीहिः पित्तकरो गुरु
For Private And Personal Use Only