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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४) - अष्टांगहृदये। रसभेदीय ११ दोषादिविज्ञानीय १२ दोषभे । दान १५ वातव्याधिनिदान १६ वातशोणिदीय १३ दोषोपक्रमणीय १४ द्विविधोपक्रम त निदान इस तरह से १६ अध्याय निदानणीय १५ शोधनादिगणसंग्रह १६ स्नेहविधि स्थान में। १७ स्वेदविधि १८ वमनविरेचनविधि १९ चिकित्सित स्थान के अध्याय वस्तिविधि २० नस्यविधि २१ धूमपानविधि चिकित्सितं ज्वरेरक्ते कासे श्वालेच यक्ष्मणि वमौ मदात्ययेऽर्शःसु विशि द्वौद्वौच मृत्रिते। २२ गंडूषादिविधि २३ आश्चोतनांजनविधि विद्रधौ गुल्मजठरपाण्डुशाकविसर्पिषु ।४२। २४ तर्पणपुटपाकविधि २५ यंत्रविधि २६ कुष्ठश्वित्रनिलव्याधिवातास्नेषुचिकित्सितम् शस्त्रविधि २७ शिराव्याधविधि २८ शल्या- द्वाविंशतिरिमेऽध्यायाः,कल्पसिद्धिरतःपरम् हरणविधि २९ शस्त्रकर्मविधि ३० क्षाराग्नि- (१) ज्वरचिकित्सित २ रक्तपित्ताचकर्मविधि इस प्रकार सूत्रस्थान के ये तीस कित्सित ३ कासचिकित्सित ४ श्व साहिकाअध्याय हैं। चिकित्सित ५ राजयक्ष्मादिचिकित्सित ६ शरीरस्थान के अध्याय ।। छर्दिहृद्रोगचिकित्सित ७ मदात्ययचिकित्सित गर्भावक्रान्तितद्वयापदंगमर्मविभागिकम् । ८ अर्शश्चिकित्सित ९ अतिस रचिकित्सित विकृति तजं षष्ठम्, १. ग्रहणीदोषचिकित्सित ११ मूत्राघातचि(१) गर्भावक्रांतिशारीर २ गर्भव्या- ! कित्सित १२ प्रमेहचिकित्सित १३ विद्रधिपच्छारीर ३ अंगविभागशारीर ४ मर्मविभाग वृद्धिचिकित्सित ११ गल्मचिकित्सित १५ शारीर ५ विकृतिविज्ञानीयशारीर ६ दूतादि उदरचिकित्सित १६ पांडुचिकित्सित १७ विज्ञानीयशारीर ये छः अध्याय शारीरस्थान | श्वयथुचिकित्सित १८ विसर्पचिकित्सित १९ कुष्ठचिकित्सित२० श्वित्रकृमिचिकित्सित निदानअध्याय के नाम । २१ वातव्याधिचिकित्सित २२ वातशोणि निदानं सार्वरोगिकम्।३९॥ तचिकित्सित इस तरह इन २५ अध्यायों ज्वरासृवछ्वासयक्ष्मादिमदाद्यशोतिसारिणाम को चिकित्सितस्थान कहते हैं इस के अनं मूत्राघातप्रमेहाणां विद्रध्यायुपरस्य च ।४० । तरकल्पस्थान है। पाण्डुकुष्ठानिलार्तानां वातास्त्रस्य च षोडश,। कल्पस्थान के अध्याय । (१) सार्वरोगनिदान २ ज्वरनिदान कल्पो वमेर्विरेकस्य तत्सिद्धिर्वस्तिकल्पना ३ रक्तपित्तकासनिदान ४ श्वासहिक्कानिदान | सिक सिद्धिर्थस्त्यापदांषष्ठो, द्रव्यकल्पोऽतउत्तरम् ५ राजयक्ष्मादि बिदान ६ मदात्ययनिदान (१ ) वमनकल्प २ विरेचनकल्प ३ वमन७ अशनिदान ८ अतीसारग्रहणीनिदान ९ विरेचनव्यापसिद्धिकल्प ४ दोपहरणसाकमूत्राघातनिदान १० प्रमेहनिदान ११ विद्र- ल्यबस्तिकल्प ५ बस्तिव्यापत्सिद्धिकल्प ६ विवृद्धिगुल्मनिदान १२ उदरनिदान १३ | भेषजकल्प ऐसे ये छः अध्याय कल्पस्थान पांडुशोफविसर्पनिदान १४ कुष्ठश्वित्रकृमिनि- | में हैं इस के आगे उत्तरस्थान है ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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