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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीम सुश्रुतसंहिता। मूलसंस्कृतटीका भाषाटीका शारीरिकके चित्र और अंगरेजी कोष सहित छपकर तयार हैं। हे प्रियवरो-आज इम सहर्ष आप लोगों का चित्त इधर खींचते हैं क्योंकि यह कहावत प्रसिद्ध है कि “एक तन्दुरुस्ती हजार नियामत' चाहै जैसी प्रिय वस्तु क्यों नहो तन्दुरुस्ती के बिगडतही वह अमिय मालूम होने लगतीहै यहांतक तो है कि मनुष्य इस प्यारी से प्यारी देह से भी ग्लानि करके मृत्यु की बाट देखने लगता है अस्तु यह देह रक्षा आयुर्वेद के प्राचीन सद्ग्रन्थों में कहे हुए नियमों का पालन करने सेही होसकती है वे नियम जैसे पूर्णरूप से इस ग्रन्थ में दिये हैं किसी दूसरे ग्रन्थ में दर्शन को भी नहीं है । इसी ग्रन्थका आशय लेले कर अथवा ज्यों के त्यों प्रकरणों को लेकर बहुत से नवीन वैद्यों ने अपने २ नाम से ग्रन्थ रचदिये हैं । वैद्यक के इस अखिल भंडार में चिकित्सा सम्बन्धी कोई भी ऐसा विषय नहीं छोडागया है जिससे दूसरे ग्रन्थों की आवश्यकता हो यदि पांचसौ रुपये की कीमत के अन्य ग्रन्थ खरीदलो तौभी इसकी समता नहीं कर सकते हैं क्योंकि यह तो स्वयम् धन्वन्तरिजी के मुखका उपदेश है, इसग्रन्थ की अनुक्रमणिका ९० पृष्ठ में है शारीरिक सम्बन्धी चित्र ४० पृष्ठ में हैं सम्पूर्णग्रन्थ १४८० पृष्ठ में समाप्त है कागज पुष्ट अक्षर बम्बई बिलायती कपडे की मुनहरी अक्षरों की जिल्द मूल्य डाकव्यय सहित १०) रु० है । प्रतिष्ठापत्र हिन्दीबंगवासी कलकत्ता १५ जून सन् १८९६ यह ग्रन्थ वैद्यक शास्त्र के प्राचीन प्रामाणिक तथा उत्तम बडे ग्रन्थों में से है। इसके जाने बिना वैद्य वैद्य नहीं होसकता वैद्यक चिकित्सा आदिका यह अगाध समुद्र है। इसके का सुश्रुताचार्य ने जो कुछ किया वह आजतक किसीसे नहीं हुआ । वैच के घरकी यह ग्रन्थ परमनिधि है । आजकल श्रीमथुरापुरी से यह भाषानुवाद सहित छपकर निकला है । अनुवादकर्ता श्रीकृष्णलाल वैश्यहैं। इन्हीं के मित्र श्यामलालजी ने इसे मथुरा में छपवाकर प्रकाशित किया है। मल्य १०) रुपया है। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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