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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मष्टांगहृदय । म. ३९ मुस्तासुराव्हागुरुचित्रकाश्च करने से बुढापे के सब रोग जाते रहते हैं सौगंधिक पंकजमुत्पलानि ॥ १०४ ॥ धवाश्वकर्णासनवालपत्र तथा हितकारी और परंमित भोजन करनेसे सारास्तथा पिपलिवत्प्रयोज्यः। आहार से उत्पन्न हुए सब रोग मिट जाते हैं लोहोपलिताः पृयगेव जीवे. .. अन्य प्रयोग। स्समाः शतम्याधिजराविमुक्तः १०५ तीब्रेण कृष्ठेन परीतमूर्ति“अर्थ-सोंठ, वायविडंग,त्रिफला,गिलोय, पः सोमराजी नियमेन खादेत् । मुलहटी, हलदी, गंगेरन, खरैटी, नागरमोथा, संवत्सरं कृष्णतिलद्वितीयां देवदारु, भगर, चीता, तथा कल्हार, पद्म, ससोमराजी वपुषाऽतिशेते ॥ १०८ ।। नीलोत्पल, धायके फूल, साल और असन अर्थ-नियमपूर्वक एक वर्षतक काले तिलों इनके कोमल पत्तोंका सार । इनसे अलग के साथ वाकुची का सेवन करने से तीन भलग पीपल की तरह रात्रि के समय लोहे कुष्ठ दूर होकर चन्द्रमा के समान कांतियुक्त के पात्रको लीपदे और प्रातःकाल दो अंजली हो जाता है। जलके साथ सेवन करे । इससे मनुष्य व्याधि . अन्य प्रयोग। भौर वृद्धावस्था से रहित होकर सौ वर्षकी ये सोमराज्या वितुषीकृताया इचूर्णरुपेतात्पयसः सुजातात् । आयु प्राप्त करता है। उधृत्य सारं मधुना लिहंति रसायनको द्विगुण प्रकर्ष । तक्रं तदेवानुपिबंति चांते ॥ १.९ ॥ क्षीरांजलिभ्यां च रसायनानि कुष्ठिन कुथ्यमानांगास्तेजातांगुलिमासिकार युक्तान्यमृन्यायसलेपनानि । भांति वृक्षा इव पुनः प्ररूढनवपल्लवाः। कुर्वति पूर्वोक्तगुणप्रकर्ष अर्थ-छिली हुई वाकुची को पीसकर मायुःप्रकर्ष द्विगुणं ततश्च ॥ १०६ ॥ दूधमें मिलाकर दही जमादे और इस दही अर्थ-लोहेके पात्रपर लेपित की हुई उक्त में से निकले हुए माखन को शहत के साथ रसायनों को आठ पल दूधके साथ सेवन गलितांग कुष्ठरोगी को सेवन करावै और करने से पूर्वोक्त गुणसे अधिक गुण होता है ऊपर से उसी दही का तक पान करादेवे। और आयु भी दूनी हो जाती है । जैसे मलितपत्रवाला वृक्ष फिर नवीन पत्तों - बाकुची अवलेह । .: भखनखदिरयूयितां सोमराजी. के उगने से सुशोभित हो जाता है, वैसेही मधुघृतशिखिपथ्यालोहचूर्णरुपेताम् । । गलितांग कुष्ठरोगी भी इस प्रयोग के सेवन शरदमवलिहानः पारिणामान् विकारां- करने से नई उंगली और नासिका प्राप्त स्त्यजति मितहिताशी तद्वदाहारजातान् | करके फिर सुशोभित हो जाता है । ____ अर्थ-असन और खैर के काथमें भावना लहसनकीविधि । दी हुई वाकुची को मधु, घृत, चीता, हरड शीतवातहिमदग्धतनूनां और लोहचूर्ण के साथ एक वर्षतफ सेवन स्तम्धभुमकुटिलष्यथितास्थ्माम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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