SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८) अष्टांगहृदये। अर्थ-शीत, उष्ण और वर्षा इन भेदों | कायिक और मानसिक हीनातिमिथ्या योगों से काल तीन प्रकार का हैं । शब्द, स्पर्श, को जानना चाहिये। रस, रूप, गंध, ये पंचभूतात्मक इन्द्रियों के रोगारोग्यलक्षण तथाभेद । विषय हैं। कायिक, वाचिक, मानसिक ये | रोगस्तुदोषवैषम्यंदोषसाम्यमरोगता।निइन्द्रियोंके कर्म हैं। इन काल अर्थ और कर्मो जागंतुविभागेन तत्ररोगाद्विधास्मृताः । का हीन, मिथ्या और अतियोग रोगों के | अर्थ-वातादिक दोषोंके अपने प्रमाणसे कारण हैं। और इनका समान योग आरोग्य- घटजाने तथा बढजानको रोग कहतेहैं । ताका कारण है । कालका हीनमिथ्यातियोंगः-- | और दोषोंकी समता अर्थात् अपने प्रमाणमें हीन शीतता, [ सर्दी की ऋतु में कम सर्दी | रहनेका नाम अरोग है । इनमेंसे निज और होना ] मिथ्याशीतता [ शीतकालमें गर्मी | आगंतुक इन दो भेदोंसे रोग दो प्रकारके होते होना ] अतिशीतता [ जितनी सर्दी होनी हैं । जो रोग वातादि दोषोंसे उत्पन्न होतेहैं चाहिये उससे अधिक सर्दी 7 ये रोगके का । उन्हें निज और जो वाह्य हेतुओंसे उत्पन्न रण हैं । इसीतरह हीनउष्णता, मिथ्याउष्ण होतेहैं उन्हें आगन्तु कहतेहैं । आगन्तु रोग ता, अतिउष्णता, हीनवर्षा, मिथ्यावर्षा, अति शस्त्राघात चोट आदिसे शरीरके बाहर उत्पन्न वर्षा, ये सब रोग के प्रधान कारण हैं । और होकर पीछे वातादिक दोषोंको कुपित करके इनका समानयोग समानशीतता, समान उ- शरीरको कष्ट पहुंचातेहैं । ष्णता, और समानवर्षा, आरोग्यताके कारण | रोगका अधिष्ठान । हैं। इसी तरह इन्द्रियोंका अपने २ विषयों | तेषांकायमनोभेदादधिष्टानमपिद्विधार. से हीन मिथ्यातियोग रोगों का कारण हैं अर्थ-इन निज और आगन्तु रोगोंकेशऔर सम्यक् योग आरोग्यताका कारण हैं। रीर और मन दो अधिष्ठानहैं । ज्वर, रक्तपित्त जैसे जिव्हाके साथ रसका हीनातिमिथ्यायोग खांसी आदिका स्थान शरीरहै । मद, मूर्छा, अर्थात् कमस्वाद आना, वा सर्वथा न आना | सन्यास, ग्रह, भूत, उन्माद, अपस्मार, राग, अथवा अधिक आना रोगका कारण है और | द्वेषादिका अधिष्ठान मनहै । जिव्हा तथा रसका सम्यक् योग आरोग्यता | मानसिक रोगको हेतु । का कारणहै । इसी तरह कमों में हीनप्रवृत्ति, | रजस्तमश्च मनसो द्वौच दोषाबुदाहृतौ । अतिप्रवृत्ति और मिथ्या प्रवृत्ति रोगका कारण ___अर्थ- रज, और तम ये दोनों मानसिक है और समान प्रवृत्ति आरोग्यताका कारणहै। | दोष हैं ये अविद्यासे उत्पन्न होते हैं और हीन भाषण,मिथ्याभाषण(खाने पीनेमें बोलना) वातादिक दोष भी मनमें विकार उत्पन्नकरके अतिभाषण ( अत्यन्त चिल्ला चिल्लाकर बोलते | उन्मादादिक रोगों को उत्पन्न करते हैं। रहना ) ये रोगके कारणहै तथा समान भा रोग परीक्षा । असे भाषण आरोग्यताका कारणहै इसी तरह दर्शनस्पर्शनप्रश्नःपरीक्षेताथरोगिणम्२१ For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy