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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अ०३८ www.kobatirth.org उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत । आखुदूषितव के लक्षण । शून वस्ति विषष्ठमावा भैमैथिभिश्वितम् छुछुवरसगन्धम् च वर्जयेदाखुषितम् । अर्थ - चूहे के विष से बस्ति, फूलजाती है, श्रेष्ठ विवर्ण होजाते हैं, गात्र में चूहे की आक्रू ते के समान ग्रंथियों की उत्पत्ति और छछूंदर कीसी दुर्गंधि इन लक्षणों के उपस्थि होनेपर चूहे का विष दुश्चिकित्स्य होता है । वावले कुत्ते के लक्षण | शुनः श्लेष्मोल्गा दोषाः संज्ञासंज्ञावहाश्रितः मुष्णंतः कुर्वते क्षोभं धातूनामतिदारुणम् । लालावानधंबधिरः सर्वतः सोऽभिधावति स्रस्तपुच्छहनु स्कंधारीरोदुःखी नताननः । अर्थ = कुत्तेके वातादि दोष कफाधिक्य होने के कारण संज्ञावाही धमनियों का आश्रय लेकर उनकी धातुओं को भयानक रीति से क्षुभित करदेते है । इससे कुत्ते की लार गिरने लगती है तथा अंधा, बहरा, ढीलीपूंछका, स्रस्तहनु होजाता है और कंधों को झुकाकर नीचां मुख करके चारों और दौडता है। वावले कुत्ते के काटने के लक्षण | दशस्तेन विदष्टस्य सुप्तः कृष्णं क्षरत्यक् हच्छिरोरुगूज्वर स्तंभस्तृष्णामूछद्भचोनुच अर्थ - ऐसे बावले कुत्ते के काटने से वह जगह सुन्न पडजाती है, और दंशस्थान से काला रुधिर झरने लगता है । तत्पश्चात् हृद्रोग, शिरोरोग, स्तब्धता, तृपा और मुर्छा | ये सब उपद्रव उपस्थित होते हैं । 1 वाले शृगालादि । अनेनान्येऽपि बोद्धव्या व्याला दंष्टप्रहारिणः अर्थ-- -- डाढ को मारनेवाले अन्यत्रावले Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ९५१ ) | शृगालादि के भी ऊपर कहे हुए लक्षण होते हैं । सविषदंश के लक्षण | कंडूनिस्तो दवैवर्ण्य सुप्तिक्लेदज्वरभ्रमाः । विदाह रागरुक्पा कशोथग्रांथिविकुंचनम् । दशावदरणं स्फोटाः कर्णिकामंडलानि च । सर्वत्र सविषे लिंगं विपरीतं तु निर्विषे । अर्थ - विषयुक्त सत्र प्रकार के दंश में खुजली, निस्तोद, विवर्णता, सुन्नता, छेद, ज्वर, भूम, विदाह, ललाई, वेदना, पाक, सूजन, गांठ, आकुंचन, दंशका विदीर्ण होना, स्फोटक, कर्णिका, और चकत्ते । ये | सब लक्षण उपस्थित होते हैं । विपरीत दशमें इनसे विपरीत लक्षण होते हैं । रोगी का मरण ॥ दष्टो येन तु तचेष्ठा रुतं कुर्वन्विनश्यति । पश्यंस्तमेव चाकस्मादादर्शसलिलादिषु ॥ अर्थ- बाबले कुत्ते आदि जो जानवर काटते हैं, रोगी उन्हीं के दृश काम करने लगता है, वैसीही बोली बोलने लगता है, और दर्पण वा जलमें अपनी वैसीही सूरत 'देखता हुआ मरजाता है | त्राससंज्ञदष्ट का निषेध ॥ योद्भस्येदष्टोऽपि शब्दसंस्पर्शदर्शनैः । जलसंत्रासनामानं दृष्टं यमपि बर्जयेत् ॥ For Private And Personal Use Only अर्थ-बिना काटा हुआ मनुष्य भी चांदे बावले शृगालादि के शब्द, स्पर्श और दर्शन से जल को देखकर. भयखाता हो, ऐसे रोग को जलसंत्रास कहते हैं, यह रोग भी वर्जित हैं । काटे हुए मनुष्य को भी जलसंत्रास होने पर याग देना चाहिये |
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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