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अष्टाङ्गहृदये । है कि रसादिकों के बिना वातादिकों की दोष । लवण ( नमक ), तिक्त ( कड़वा ), ऊषण संज्ञा नहीं हो सक्ती और बातादिकों के बिना । ( कड़वा ), कषाय ( कसला ) ये छः रसहैं रसादिक दूव्य नहीं कहला सकते इनके ये और ये छःओं रस पंचभूतात्मक अर्थात् पृथ्वी नाम अन्योन्याश्रय हैं।
जल, अग्नि, वायु और आकाशमें रहतहैं । मलोंके नाम।
| इनमेंसे यथापूर्व प्राणियों को बल देनेवालहैं मला मूत्रशकृत्स्वेदादयोऽपिच १३ | जैसे कषायसे ऊषण, ऊषणसे तिक्त, तिक्तसे अर्थ-मूत्र, विष्टा और स्वेदादिक की मल लवण, लवणसे अम्ल और अम्लसे मधुर बलसंज्ञा है और इनकी दूष्य संज्ञा भी है क्योंकि दायकहै । ये रसनेन्द्रिय ( जिव्हा ) से ग्रहण ये रसादिक धातुओंसे दूषित होते हैं । जैसे किये जातहैं इसलिये रस कहलातेहैं । गुड रसादिक धातुसंज्ञक और दूष्येसंज्ञक है वैसेही । बूरा आदि मधुरहै, इमली, विजारा आदि खट्टे; मूत्रादिक भी मलसंज्ञक और दूष्यसंज्ञक है। सेंधा, सांभर आदि नमकीन; नीम आदि तिक्तः
वृद्धि और अपचय । कुटकी मिरच आदि ऊषण और हरड आदि वृद्धिः समानैः सर्वेषां विपरीतैर्विपर्ययः । कषाय होतेहैं । __ अर्थ-शरीरमें स्थित संपूर्ण दोष धातु
रसांके गुण । और मलादिक तुल्यसद्भावसे और अपने । तत्राद्यामारुतं घ्नति त्रयस्तितादयः कअपने प्रमाणमें होतो इनकी बृद्धि होती है फम् ॥१५॥ कषायतिक्तमधुराःपित्तमन्ये और जो अपने अपने प्रमाण से घटबढ जाते | तु कुर्वते । हैं तो इनका क्षय होता है । कहा भी है सर्वेषां अर्थ-इन रसों से पहिले तीन स्वादु, सर्वदा वृद्धिस्तुल्यकर्मगुणक्रियैः । भावैर्भवति अम्ल और लवण वातको नष्टकरतेहैं और पिभावानां विपरीतैः विपर्यायः ॥ समान द्रव्य छले तीन तिक्त, ऊपण और कषाय वातको गुण क्रियावाले पदार्थों से पदार्थों की वृद्धि | कुापित करतहैं। तिक्त, ऊषण, कषाय यह तीनों होती है और विपरीत गुणद्रव्य क्रियावाले | कफको नष्ट करतहे और स्वादु, अम्ल, लवण पदार्थों से उनका क्षय होता है। जैसे जलात्म- ये तीनों कफको प्रकुपित करतेहैं । कषाय, कजल जलात्मक कफकी वृद्धि करता है। वैसे तिक्त और मधुर ये तीनों पित्तको नष्टकरतेहै । ही दूधसे उत्पन्न घृत वीर्यको वढाताहै इसी शेष तीन अम्ल, लवण और कटुक पित्तको तरह और भी जानना चाहिये ।
प्रकुपित करतेहैं । रसोंका वर्णन ।
इसका सारांश यह हुआ कि मधुररस बात रसाःस्वाद्वम्ललवणतिक्तोषणकषायकाः तथा पित्तका नाश करनेवाला और कफको ॥१४॥ षड़ द्रव्यमाश्रितास्ते तु यथापूर्व बढानेवालाहै । अम्लरस वातनाशक और कफ बलासः।
तथा पित्तका वर्द्धकहै । लवण वातनाशक ६नाई । मिष्ठ ), अम्ल (खट्टा ), और कफपित्तवर्द्धकहै । तिक्त कफपित्तनाशक
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