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उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत ।
( ९२३)
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अर्थ-विष के चौथे वेग में सिर में तीसरे वेगकी चिकित्सा। ..." अत्यन्त भारापन होजाता है, च शब्द से उक्त तृतीये गदपानं तु हितं नस्य तथाजनम् । तीनों के लक्षण भी होते हैं ।
अर्थ- तीसरेवेग में विषनाशक औषधियों पंचग बेग ।
का पान,नस्य और हितकारक अंजन होताहै। कफपसेको वैवये पर्वभेदश्च पंचमे।।
चौथा बेग । सर्वदोषप्रकोपश्च पक्वाधाने च वेदना। चतुर्थे मेहसंयुक्तमगदं प्रतियोजयेत् ।
अर्थ-विष के पांचवें वेग में कफ का । अर्थ-चौथेवेग में स्नेहसे युक्त औषध गिरना, देह में विवर्णता, सन्धियों में वेदना | प्रयोग करना चाहिये । सम्पूर्ण दोषों का प्रकोप तथा पक्वाशय में
पांचवां वेग। वेदना होती है।
पंचमे मधुककाथमाक्षिकाभ्यां युतं हितम्। छटा वेगा
अर्थ-पांचवेग में मुलहटी का काढा षष्ठे संशाप्रणाशश्च सुभृशं चाऽतिसार्यते और शहत के साथ विषनाशक औषधों का
अर्थ-विष के छटेवेग में बेहोशी तथा पान करावै । अत्यन्त दस्त होने लगते हैं ।
छटा वेग। सातवां वेग
षष्टेऽतिसारवात्सिद्धिः स्कंधपृष्ठकटीभगो भवेन्मृत्युश्च सप्तमे ॥ अर्थ-छटेवेगमें अतिसारके सदश चिकि___ अर्थ-विष के सातवें बेग में कंधे, पीठ | त्सा करना उचित है । और कमर में टूटने कीसी पीडा तथा रोगी
सातवा वेग ॥ की मृत्युभी होजाती है।
अवपीडस्तु सप्तमे। * प्रथम वेगकी चिकित्सा । । मूर्ध्नि काफपदं कृत्वासासृग्वापिशितंक्षिपत् प्रथमे विषयेगे तु वांतं शीतांबुसेचितम् ।। अर्थ-सातवेंवेग में रोगानुत्पादनीय असर्पिर्मधुम्यां संयुक्तमगदं पाययदूद्वतम् ॥ ध्याय में कहा हुआ अवपीडन नाम नस्य अर्थ-स्थावर विषकी प्रथमावस्था में
देना चाहिये अथवा मस्तक पर काकपद रोगीको प्रथम वमन कराकर उसके शरीर
नामक शस्त्रसे चिन्ह करके उसपर रुधिर पर ठंडे जलकी धार डाले। तत्पश्चात् बहुत
साहत मांसको स्थापित करदे । शीघ्र शहत और घी मिलाकर विषनाशक
सर्व विषनाशक यवागू ॥ भौषधियों का पान करावे ।
कोशातक्यग्निकः पाठासूर्यबल्यमृताभयाः। द्वितीय वेगकी चिकित्सा
शेलुः शिरीषः किणिही हरिद्रे क्षौद्रसाहया द्वितीये पूर्ववद्वांतं विरिक्तं चाऽनुपाययेत् पुनर्नवे विकटुकं वृहत्यौ सारिये वला । __ अर्थ-दूसरेवेग में प्रथमवेग की तरह । एषा यषाणूनियूहेऽशीतां सघृतमाक्षिकाम् वमन और शीतल जलका प्रयोग करके युजादेगांतरे सर्वविषनी कृतकर्मणः । विरेचक विषनाशक औषधों का पान करावे। अर्थ- कडबी तोरई, चीता, पाठा, सूर्य
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