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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६) अष्टाङ्गहृदयेअनुकुर्यात्तमेवातो लौकिकेऽर्थे परीक्षकः॥ आईसन्तानतात्यागः कायवाक्चेतसां दमः॥४५॥ इस कारण जैसे संसारमें व्यवहार होवै तैसे ही आपभी व्यवहार करै, और सब प्राणिमात्रोंमें करुणा दानशरीर-वाणी-चित्तका उपशम ॥ ४५ ॥ स्वार्थबुद्धिः परार्थेषु पर्याप्तमिति सद्भतम् ॥ नक्तंदिनानि मे यान्ति कथम्भूतस्य सम्प्रति ॥ ४६॥ और पराये प्रयोजनोंमेंभी स्वार्थबुद्धि ये सब सत्पुरुषके वृत्त समाप्त हुयेहैं, इस समय मेरे दिन और रात किस प्रकार वीतती है ॥ ४६॥ दुःखभाङ् न भवत्येव नित्यं सन्निहितस्मृतिः॥ इत्याचारः समासेन सम्प्राप्नोति समाचरन् ॥ ४७॥ ऐसे नित्यप्रति सन्निहित स्मृतिवाला मनुष्य दुःखको नहीं प्राप्त होता है इस कारण संक्षेपसै यह आचार कहा ॥ ४७॥ आयुरारोग्यमैश्वर्यं यशो लोकांश्च शाश्वतान् ॥ ४८॥ और इस आचारको सेवनेवाला मनुष्य आयु-आरोग्य-ऐश्वर्य-यश--शाश्वत लोकको प्राप्त होता है ॥ ॥४८॥ इति वेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताप्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां सूत्रस्थाने द्वितीयोऽध्यायः ॥ २ ॥ तृतीयोऽध्यायः। -occasअथात ऋतुचर्याध्यायं व्याख्यास्यामः॥ इसके अनंतर ऋतुचर्यानामक अध्यायको व्याख्यान करेंगे । मासैर्द्विसंख्यैर्माघायैः क्रमात् षडतवः स्मृताः ॥ शिशिरोऽथ वसन्तश्च ग्रीष्मवर्षाशरद्धिमाः॥१॥ माघआदि दोदो महीनोंकरके छः ऋतु होतेहैं; शिशिर १ वसंत २ ग्रीष्म ३ वर्षा ४ शरद् ५ हिम ६ कोई ग्रीष्म वर्षी हिम तीन ही ऋतु पढते हैं परन्तु कालके विशेष निर्णयमें छः ऋतु हैं॥१॥ शिशिराद्यास्त्रिभिस्तैस्तु विद्यादयनमुत्तरम् ॥ आदानञ्च तदादत्ते नृणां प्रतिदिनं बलम् ॥ २ ॥ शिशिरआदि तीन ऋतुओंकरके उत्तरायण जानना, तब सूर्य मनुष्योंके वलको प्रतिदिन ग्रहणकरताहै ॥ २॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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