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(७९६)
अष्टाङ्गहृदयेअथावृतानां धीचित्तहृत्वानां प्राक्प्रबोधनम् ॥१५॥ तीक्ष्णैः कुर्य्यादपस्मारे कर्मभिर्वमनादिभिः॥ और सब चिह्नोंसे युक्त अपस्मारको वर्जदेवै ॥१५॥ ऐसे अपस्मारके रूपको जानके बुद्धि चित्त हृदयके स्त्रोतोंको पहले बोध करवावै और तीक्ष्ण कर्मवाले औषधोंकरके वमनआदि कर्म करवावे ॥
वातिकं बस्तिभूयिष्ठैः पैत्तं प्रायो विरेचने ॥१६॥ श्लैष्मिकं व मनप्रायैरपस्मारमुपाचरेत् ॥ सर्वतस्तु विशुद्धस्य सम्यगावासितस्य च ॥१७॥ अपस्मारविमोक्षार्थं योगान्संशमनाञ्छृणु॥ वातके उन्मादमें बहुतसे बस्तिकर्म करवावे, और पित्तके अपस्मारमें विशेषकरके जुलाब देव ॥ १६ ॥ कफकेमें विशेषकरके वमन करवावे ऐसे सब प्रकारसे शुद्ध किया हुआ और सम्यक् आश्वासित अर्थात पेयादिक अन्नोंकरके युक्त किए हुये ॥ १७ ॥ अपस्मार रोग छुटानेके अर्थ संशय न करनेवाले योगोंको सुनो ॥
गोमयस्वरसक्षीरदधिमत्रैः शृतं हविः॥ १८ ॥
अपस्मारज्वरोन्मादकामलांतकरं पिबेत् ॥ कि गोबरका स्वरस दूध दही मूत्र इन्होंमें सिद्ध कियाहुआ घृत ॥ १८ ॥ अपस्मार ज्वर उन्माद कामलाके नाश करनेके वास्ते पीना चाहिये। द्विपञ्चमूलीत्रिफलाद्विनिशाकुटजत्वचः॥१९॥सप्तपर्णमपामार्ग नीलिनींकटुरोहिणीम्।।शम्याकपुष्करजटाफल्गुमूलदुरालभाः ॥२०॥द्विपलाःसलिलद्रोणे पक्त्वा पादावशेषितामाङ्गीपाठाढकीकुम्भनिकुम्भाव्योषरोहिषैः॥२१॥मूर्वाभूतिकभूनिम्बश्रेयसी सारिवाद्वयैः।मदयन्त्यग्निनिचुलैरक्षाशैः सर्पिषः पचेत् ॥२२॥ प्रस्थं तद्ववैःपूर्णैःपञ्चगव्यमिदं महत्॥ज्वरापस्मारजठरभगन्दरहरं परम्॥२३॥शोफार्श:कामलापाण्डुगुल्मकासग्रहापहम्॥
और दोनों पंचमूल त्रिफला दोनों हलदी कुडाकी छाल ॥ १९ ॥ सातलाऊंगा कालादाना कुटकी अमलतास पोहकरमूल बालछड कालीगूलरकी जड धमांसा ॥२०॥ इन सबोंको आठ आठ तोले भर लेवे फिर २५६ तोले जलमें पकाके चौथा हिस्सा बाकी रहे तब भारंगी पाठा तुरीधान्य निशोत जमालगोटाकी जड सूंठ मिरच पीपल रोहिषतृण ।। २१ ॥ मूर्वा अर्थात् मरो रफली करंजुआ नींब हरडै अनंतमूल मैनफल चीता जलवेत इन्होंको एक एक तोला प्रमाण ले कल्क बना तिसमें और इस पूर्वोक्त काथमें वतको ॥ २२ ॥ चौसठ ६४ तोले प्रमाण मिलाके पकावे यह पंचगव्य नामवाला महाघत ज्वर अपस्मार जठररोग भगंदरको नाशताहै ॥२३॥ और शोजा बबासीर कामला पांडुरोग गुल्म खांसीको नाशताहै ॥
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