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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । सन्ततिसे रहित मनुष्योंके वीर्यको पुष्टकरनेवाला वाजीकरण ४० ऐसे ४० अध्यायोंक उत्त'तंत्र है सो इसप्रकारसे १२० सध्यायें छः ६ स्थानों करके प्रकाशित हैं । इति वेरीनिवासिगौडकुलावतंसश्रीपंडितशिवसहायसूनुवैद्यरविदत्तशास्त्रिक ताष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां प्रथमोऽध्यायः ॥१॥ द्वितीयोऽध्यायः। अथातो दिनचर्याध्यायं व्याख्यास्यामः॥ इसके अनंतर दिनचर्यानामक अध्यायको व्याख्यान करेंगे, उसमें पहले स्वस्थवृत्त कहते हैं, ब्राह्म मुहूर्ते उत्तिष्ठेत् स्वस्थो रक्षार्थमायुषः॥ शरीरचिन्तां निवर्त्य कृतशौचविधिस्ततः ॥१॥ ब्रमि मुहूर्त, अर्थात् चार घडी रात्रिरहेसे दो घडी रात्रि रहेतक स्वस्थ अर्थात् रोगसे रहित मनुष्य अपने जीवनकी रक्षाके अर्थ उठता रहै, पीछे जीर्ण और अजीर्ण निरूपण आदि शरीरचिंतासे निवृत्त होकर मूत्र और मल आदिके त्यागकी विधि करे; समदोष समअग्नि समधातु मल क्रियावाले पुरुषको स्वस्थ कहते हैं ॥ १ ॥ अर्कन्यग्रोधखदिरकरञ्जककुभादिकम् ॥ प्रातर्भुक्त्वा च मृद्वगं कषायकटुतिक्तकम् ॥ २॥ पीछे आक-वट-खैर-करंजुवा-कौह आदि वृक्षकी-अग्रभागमें कूर्चसे संयुक्त, कषाय-कटुतिक्त रसोंवाली ॥ २ ॥ भक्षयेदन्तधवनं दन्तमांसान्यबाधयन् ॥ नाद्यादजीर्णवमथुश्वासकासज्वरादिती ॥ ३॥ दंतधावन अर्थात् दतौन करै परंतु दंतोंके मसूढोंको पीडित नहीं करै और अजीर्ण-छार्द-- श्वास-कास-ज्वर-लकवावात-रोगोंवाला ॥ ३॥ तृष्णास्यपाकहनेत्रशिरःकामयी च तत् ॥ सौवीरमञ्जनं नित्यं हितमक्ष्णोस्ततो भजेत् ॥४॥ और तृषा-मुखपाक-हृद्रोग-शिरके रोग-कर्णरोग युक्त मनुष्य दतौन न करै । पीछे नित्यप्रति सुरमाके अंजनको नेत्रोंमें आंजातारहै क्योंकि यह अंजन नेत्रोंमें हित है ॥ ४ ॥ चक्षुस्तेजोमयं तस्य विशेषात् श्लेष्मणो भयम् ॥ योजयेत् सप्तरात्रेऽस्मात्स्त्रावणार्थे रसाञ्जनम् ॥ ५॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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