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कल्पस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (७४७) पकायाहुआ काथ कहाताहै और रात्रिमात्र द्रवमें स्थितरहा शीतं कहाताहै ॥ १० ॥ और तत्काल द्रवमें मथकर और छानके बनायाहुआ फांट कहाताहै ॥
युञ्जायाध्यादिबलतस्तथा च वचनं मुनेः॥ ११ ॥ मात्राया न व्यवस्थाऽस्ति व्याधि कोष्ठं बलं वयः॥
आलोच्य देशकालौ च योज्या तद्वच्च कल्पना ॥ १२॥ और तिन स्वरस आदि पांचों मान और कल्पनाको व्याधि आदिकेबलसे प्रयुक्त करे, ऐसेही मुनिका वचन है ॥ ११ ॥ मात्राकी व्यवस्था नहीं है किंतु व्याधि कोष्ठ बल अवस्था देश काल इन्होंको देखकर नैसेही कल्पनाहै ॥ १२ ॥
मध्यं तु मानं निर्दिष्टं स्वरसस्य चतुःपलम् ॥ पेष्यस्य कर्षमा
लोड्यं तवस्य पलत्रये॥१३॥काथं द्रव्यपले कुर्यात्प्रस्थाई - पादशेषितम्॥शीतं पले पलैः षभिश्चतुर्भिश्चततोऽपरम्॥१४॥
१६ तोले प्रमाण स्वरसकी मध्यममात्रा कहीहै चूर्णकी और कल्ककी एक एक तोला मध्यमात्रा कहीहै परंतु १२ तोले द्रवमें मिलाके एक तोला परिमाण आलोडित करना योग्यहै ॥ १३॥ चार तोले द्रव्यमें ३२ तोले पानी मिला जब आठ तोले शेषरहैं यह काथकी मात्राहै और ३२ तोले द्रवमें चार तोले द्रव्यको मिलावे ऐसा शीत कषायकी मात्राहै और १६ तोले पानीमें ४ तोले द्रव्यको मिलावै यह फांटकी मात्राहै ॥ १४ ॥
स्नेहपाके त्वमानोक्तौ चतुर्गुणविवर्द्धितम् ॥ कल्कलेहद्रवं योज्यमधीते शौनकः पुनः ॥१५॥ स्नेहे सिध्यति सिद्धाम्बुनिःक्का थस्वरसैः क्रमात् ॥ कल्कस्य योजयेदंशं चतुर्थं षष्ठमष्टमम् ॥१६॥ पृथक्नेहसमं दद्यात्पञ्चप्रभृति तु द्रवम् ॥ स्नेहके पाकको करनाचाहै जब चारगुनेसे वर्धितकिया कल्क स्नेह द्रव ये योजित करने योग्य हैं और शौनक वैद्य ऐसे कहताहै ॥१५॥ स्नेह कदाचित् शुद्ध पानीके संग कदाचित् निःकाथके संग कदाचित् सरसके संग सिद्धहोताहै इसवास्ते शुद्ध पानी निःकाथ स्वरस इन्होंकरके सिद्ध किये स्वरसमें क्रमकरके कल्कका चौथा छठा आठवाँ भाग योजित करै ॥ १६ ॥ पांचसे आदिलेके द्रव्योंमें पृथक् द्रव स्नेहके समान होताहै ॥
नागुलिग्राहिता कल्के न स्नेहेऽग्नौ सशब्दता ॥ १७॥ वर्णादिसम्पच्च यदा तदैनं शीघ्रमाहरेत् ॥
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