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अष्टाङ्गहृदयेद्विधा ख्यातं च तन्मूलं श्यामं श्यामारुणं त्रिवृत्॥ त्रिवृदाख्यं वरतरं निरपायं सुखं तयोः॥३॥
सुकुमारे शिशौ वृद्धे मृदुकोष्ठे च तद्वितम् ॥ तिस निशोतकी जड दोप्रकारकी कही है श्यामरंगवाली श्यामा कहीतीहै और रक्तरंगवाली त्रिवृत कहातीहै तिन दोनोंमें सुखरूप और अपायसे वर्जित होनेमें त्रिवृत् नामवाली अत्यंत श्रेष्टहै ॥ ३ ॥ सुकुमार बालक वृद्ध कोमलकोप्टवाला इन्होंमें यह हितहै ।
मूर्छासंमोहहृत्कंठकर्षणक्षणनप्रदम् ॥४॥ श्याम तीक्ष्णाशुकारित्वादतस्तदपि शस्यते ॥
करे कोष्ठे वहौ दोषे क्लेशक्षामिणिचातुरे ॥५॥ और मूर्छा संमोह हृदय कंठकर्षण कंठके क्षयको देनेवालीहै ॥ ४ ॥ श्यामा तीक्ष्ण और शीघ्रकारीपनेसे क्रूरकोष्ठों और बहुतसे दोषमें क्लेश सहनेवाले रोगीमें यह श्रेष्ठहै ॥५॥
गम्भीरानुगतं श्लक्ष्णमतियग्विसतं च यत् ॥
गृहीत्वा विसृजेत्काष्ठं त्वचं शुष्कां निधापयेत् ॥ ६॥ गंभीर अनुगत अर्थात् पृथ्वीके भीतर प्रविष्टहुई और कोमल और तिरछेपनेसे रहित ऐसी निशोतकी जडको ग्रहणकर काष्ठको त्यागै और सूखीहुई त्वचाको स्थापित करै ॥ ६ ॥
अथ काले तु तच्चूर्णं किञ्जिन्नागरसैन्धवम्॥वातामये पिवेदम्लैः पित्ते साज्यसितामधु ॥७॥क्षीरद्राक्षेक्षुकाश्मर्यस्वादुस्कन्धव रारसैः॥कफामये पीलुरसमूत्रमद्याम्लकाञ्जिकैः॥८॥पञ्चकोलादिचूर्णैश्च युक्त्या युक्तं कफापहैः॥ पीछे जुलाबके योग्य कालमें निशोतकी जडकी वचाके चूर्णको कछु सूठ और सेंधानमकसे संयुक्तकर कांजीके संग वातरोगमें पीवै और पित्तके रोगमें घृत मिसरी शहद इन्होंसे संयुक्तकिये तिस निशोतके चूर्णको ॥ ७ ॥ दूध दाख ईख कंभारी सेंधानमकका समूह त्रिफला इन्होंके रसोंके संग पावै और कफके रोगमें पीलुका रस गोमूत्र मदिरा खट्टा रस कांजी इन्होंके संग ॥ ८ ॥ और पीपल, पीपलामूल, चव्य, चीता, सूंठ इन आदि कफको नाशनेवाले चूर्णोकरके युक्तिके द्वारा युक्त किये तिसी निशोतके चूर्णको पावै ॥
त्रिवृत्कल्ककषायेण साधितः ससितो हिमः ॥९॥ मधुत्रिजातसंयुक्तो लेहो हृद्यं विरेचनम् ॥ अजगन्धातुगाक्षीरी विदारी शर्करा त्रिवृत् ॥१०॥
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