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चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (६५७) सुंठ मिरच पीपल वेलगिरी हलदी दारुहलदी त्रिफला दोनों नखी नागरमोथा लोहाका चूर्ण पाठा वायविडंग देवदार ॥ ३६ ॥ मेढासिंगी भारंगी दूधमें पकाया घत मट्टीसे उपजे हुये सब प्रकारके विकारोंको तत्काल शांत करता है ॥ ३७ ॥
तद्वत्केसरयष्ट्याह्वपिप्पलीक्षीरशाद्वलैः॥ मृर्दोषणाय तल्लौल्ये वितरेद्भावितां मृदम् ॥३८॥ वेल्लाग्निनिम्बप्रसवैः पाठया मूर्व याऽथवा ॥ मृद्भेदभिन्नदोषानुगमाद्योज्यं च भेषजम् ॥ ३९ ॥ केशर मुलहटी पीपल दूध हरीब इन्होंकरके पकाया घृत पूर्वोक्त गुणोंको करताहै, और मट्टीके आभिलाषाके अर्थ तिसी मट्टीमें लालच होवे तो भावित करी मट्टीको देवै ॥ ३८ ॥ वायविडंग चीता नींव इन्होंके पत्तोंकरके अथवा पाठा तथा मूर्वाकरके और मट्टीके भेदकरके भिन्न हुये वातआदि दोषके ज्ञानसे औषध युक्त करना योग्य है ॥ ३९ ॥
कामलायां तु पित्तप्नं पाण्डुरोगाविरोधि यत् ।। कामलारोगमें पित्तको नाशनेवाला पांडुरोगके विरोधसे रहित ऐसा औषध देना योग्य है ।
पथ्याशतरसे पथ्यावृन्तार्द्धशतकल्कितः ॥ ४०॥
प्रस्थे सिद्धे घृतं गुल्मकामलापाण्डुरोगनुत् ॥ और १०० हरडोंके रसमें हरडैके डड्डल ५० तोले तिन्होंका कल्क बना ॥ ४० ॥ तिसमें सिद्ध किया ६४ तोले घृत गुल्म कामला पांडुरोगको नाशता है ।।
आरग्वधं रसेनेक्षोर्विदा मलकस्य वा ॥ ४१॥ सत्र्यूषणं बिल्वमात्रं पाययेकामला पहम्॥पिबेन्निकुम्भकल्कं वा द्विगुणं शीतवारिणा ॥ ४२ ॥ कुम्भस्य चूर्णं सक्षौद्रं त्रैफलेन रसेन वा ॥ त्रिफलाया गुडूच्या वा दाा निम्बस्य वा रसम् ॥४३॥ प्रातः प्रातमधुयुतं कामलार्चाय योजयेत् ॥ निशागैरिकधात्रीभिः कामलापहमञ्जनम् ॥ ४४ ॥
और अमलतासके अथवा ईखके रसकरके अथवा विदारीकंद और आवलाके रस करक॥४१॥ और सूंठ मिरच पीपलसे संयुक्तकर पीछे चार तोलेभर पान करावै यह कामलाको नाशता है अथवा ८ तोले प्रमाणते कई दिनोंतक जमालगोटाकीजडके कल्कको शीतल पानीके संग पीवै ॥ ४२ ॥ अथवा शहदसे संयुक्त किये निशोतके चूर्णको त्रिफलाके रसके संग पीवै अथवा त्रिफला गिलोय दारुहलदी नींब इन्होंमेंसे एककोइसेको ॥४३॥ शहदसे संयुक्त कर प्रभातमें नित्यप्रतिकामलारोगीके अर्थ देवै और हलदी गेरू आमला करके किया अंजन कामलाको नाशता है॥४४॥
तिलपिष्टनिभं यस्तु कामलावान्सृजेन्मलम् ॥ कफरुद्धपथं तस्य पित्तं कफहरैर्जयेत् ॥४५॥
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