________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (६३९) हाऊवेर चोष त्रिफला नीलनीफल त्रायमाण हरडै कुटकी शातला निशोत बच ।। २२ ॥ सेंधानमक कालानमक पीपल इन्होंका चूर्ण कर अनार त्रिफला मांस इन्होंका रस गोमूत्र गरमपानी इन्होंके संग ॥ २३ ॥ पीना योग्यहै यह सबप्रकारके गुल्मोंमें और प्लीहरोगमें सबप्रकारके उदररोगोंमें श्वित्रमें कुष्ठमें अजीर्णमें मंदाग्निमें बिषमाग्निमें ॥ २४ ॥ शोजा बवासीर पांडुरोग इन्होंमें कामलामें तथा हलीमकमें यह जुलाब करके बात पित्त कफ इन्होंको साधताहै ॥ २५ ॥
नीलिनी निचुलं व्योषं क्षारौ लवणपञ्चकम् ॥
चित्रकं च पिबेच्चूर्णं सर्पिषोदरगल्मनुत् ॥ २६ ॥ नीलिनी जलवेत झूठ मिरच पीपल जवाखार साजीखार पांचोंनमक चीता इन्होंके चूर्णको घृतके संग पवि यह पेटरोग तथा गुल्मको नाशताहै ॥ २६ ॥
पूर्ववच्च पिबेदुग्धं क्षामः शुद्धोऽन्तरान्तरा ॥ कारभं गव्यमा वा दद्यादात्यायके गदे ॥ २७॥ स्नेहमेव विरेकार्थे दुर्बलेभ्यो विशेषतः॥
और पहिलेकी तरह शुद्ध और क्षाम हुआ मनुष्य मध्य मध्यमें ऊंटनीके दूधको, बकरीक दूधको पीव और आत्ययिक रोगोंमें ॥ २७ ॥ जुलाबके अर्थ स्नेहको देवै और दुर्बल मनुष्यके अर्थ विशेष करके स्नेहको देवै ॥
हरीतकीसूक्ष्मरजः प्रस्थयुक्तं घृताटकम्॥२८॥अग्नौ विलाप्यमथितं खजेन यवपल्लकानधापयेत्ततोमासाद्धृतंगालितं पचेत्॥२९॥ हरीतकीनां कान दन्ना सारा संयुतम् ॥ उदरंगरमष्ठीलामानाहं गल्मविद्रधिम् ॥३०॥हन्येतत्कुष्ठमुन्मादमपस्मारं च पानतः॥
और ६४ तोले हरडोंके महीन चूर्णसे संयुक्त २५६ तोले घतको ॥ २८॥ अग्निके द्वारा पकाके पीछे कदशीस आलोडितकर पात्रमें ढाल जवोंके समूहमें स्थापित करै पीछे एक महीनेमें निकालै और वस्त्रमें छानि पकाये ॥ २९ ॥ पीछे हरडोंके क्वाथ करके और खट्टी दही करके संयुक्त करे यह उदररोग गररोग अष्टीला वात अफारा गुल्म विद्रधि ॥ ३० ॥ कुष्ठ उन्माद अपस्मारको पीनेसे नाशताहै ॥
स्नुक्क्षीरयुक्तागोक्षीराच्छृतशीतात्खजाहतात् ॥३१॥यज्जातमाज्यं स्नुक्क्षीरसिद्धंतच तथागुणम् ॥क्षीरद्रोणं सुधाक्षारप्रस्थार्द्धन युतं दधि॥३२॥जातं मथिल्ला तलपिस्त्रिवृत्सिद्धं च तद्णम् ॥ तथा सिद्धं घृतप्रस्थं पयस्यष्टगुणे पिलेन ॥३३॥स्नुक्क्षीरपलकल्केन त्रिवृता षट्पलेन च ॥
For Private and Personal Use Only