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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६३२) अष्टाङ्गहृदयेऔर थूहरके दूधकरके द्रवरूप किया और थूहरकेही दूधकरके भावितकिया निशोतका चूर्ण ॥९७॥ एक तोले भर ले शहद और घृतसे मिला चाटनेसे सुंदर जुलाब लगताहै ॥ कुष्ठश्यामात्रिवृदन्तीविजयाक्षारगुग्गुलुम् ॥ ९८॥ गोमूत्रेण पिबेदेकं तेन गुग्गुलुमेव वा ॥ और कूठ मालविकाविशोत निशोत जमालगोटेकी जड आरनी जवाखार गूगलको ।। ९८ ॥ गोमूत्रके संग पावै अथवा अकेले गूगलको गोमूत्रके संग पीवै ॥ निरूहान्कल्पसिद्वयुक्तान्योजयेद्गुल्मनाशनान् ॥ ९९ ॥ अथवा कल्पसिद्धिमें कहेहुये और गुल्मको नाशनेवाले निरूहबस्तियोंको योजित करै ।। ९९ ॥ कृतमूलं महावास्तुं कठिनं स्तिमितं गुरुम् ॥ गूढमांक्षं जयेद्गुल्म क्षारारिष्टानिकर्मभिः॥१००॥एकान्तरंद्वयन्तरं वा विश्रमय्याथवा व्यहम्॥शरीरदोषवलयोर्वर्द्धनक्षपणोयतः॥ १०१॥ अर्शोऽश्मरीग्रहण्युक्ताः क्षारा योज्याः कफोल्बणे ॥ कुशल वैद्य जड कियेहुये अत्यंत स्थानवाले कठोर गीले भारी और गूढ मांसवाले गुल्मको खार अरिष्ट अग्निकर्म करके जीते।।१००|एक दिनका अथवा दो दिनका अथवा तीन दिन विश्राम करके शरीरका दोष और बलको बढाने और फेंकनमें उद्यम करनेवाला वह मनुष्य रहै ॥ १० १॥ कफी अधिकतावाले गुल्ममें बवासीर संग्रहणी पथरी इन्होंके चिकित्सितोंमें कहेहुये खार युक्त करने योग्य हैं।। देवदारुत्रिवृदन्तीकटुकापञ्चकोलकम् ॥१०२॥ स्वर्जिकायावशूकाख्यौ श्रेष्ठापाठोपकुञ्चिकाः॥ कुष्टं सर्पसुगन्धां च द्वयक्षाशं पटुपञ्चकम् ॥१०३॥ पालिकं चूर्णितं तैलवसादधिघृताप्लुतम् ॥ घटस्यान्तः पचेत्पक्वमग्निवर्चे घटे च तम् ॥ १०४ ॥ क्षारं गृहीत्वा क्षीराज्यतक्रमद्यादिभिः पिबेत् ॥ गुल्मोदावर्त्त वर्माशोजठरग्रहणीकृमीन् ॥ १०५॥ अपस्मारगरोन्मादयोनिशुक्रामयाश्मरीः ॥ क्षारोऽगदोऽयं शमयेद्विषं चाखुभजङ्गाजम् ॥ १०६ ॥ और देवदार निशोत जमालगोटाको जड कुटकी सोंठ चव्य चीता पीपल पीपलामूल॥१०॥ साजीखार जवाखार त्रिफला पाठा कलोंजी कूठ मुंगसवेल ये सब दो दो तोले लेबै और पांचों नमक ॥ १०३ । चार तोले इन्होंके चूर्णको तेल वसा दही इन्होंसे संयुक्त कर घडेके भीतरही पकावै, जब अग्निके वर्णके समान घडा हो जाये तब ॥ १०४ ।। तिस खारको ग्रहण कर दूध घृत तक मदिरा आदिके संग पीवै, यह गुल्म उदावर्त वर्मरोग बवासीर पेटरोग ग्रहणी दोष कृमिरोग For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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