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(६३२)
अष्टाङ्गहृदयेऔर थूहरके दूधकरके द्रवरूप किया और थूहरकेही दूधकरके भावितकिया निशोतका चूर्ण ॥९७॥ एक तोले भर ले शहद और घृतसे मिला चाटनेसे सुंदर जुलाब लगताहै ॥
कुष्ठश्यामात्रिवृदन्तीविजयाक्षारगुग्गुलुम् ॥ ९८॥
गोमूत्रेण पिबेदेकं तेन गुग्गुलुमेव वा ॥ और कूठ मालविकाविशोत निशोत जमालगोटेकी जड आरनी जवाखार गूगलको ।। ९८ ॥ गोमूत्रके संग पावै अथवा अकेले गूगलको गोमूत्रके संग पीवै ॥
निरूहान्कल्पसिद्वयुक्तान्योजयेद्गुल्मनाशनान् ॥ ९९ ॥ अथवा कल्पसिद्धिमें कहेहुये और गुल्मको नाशनेवाले निरूहबस्तियोंको योजित करै ।। ९९ ॥ कृतमूलं महावास्तुं कठिनं स्तिमितं गुरुम् ॥ गूढमांक्षं जयेद्गुल्म क्षारारिष्टानिकर्मभिः॥१००॥एकान्तरंद्वयन्तरं वा विश्रमय्याथवा व्यहम्॥शरीरदोषवलयोर्वर्द्धनक्षपणोयतः॥ १०१॥ अर्शोऽश्मरीग्रहण्युक्ताः क्षारा योज्याः कफोल्बणे ॥ कुशल वैद्य जड कियेहुये अत्यंत स्थानवाले कठोर गीले भारी और गूढ मांसवाले गुल्मको खार अरिष्ट अग्निकर्म करके जीते।।१००|एक दिनका अथवा दो दिनका अथवा तीन दिन विश्राम करके शरीरका दोष और बलको बढाने और फेंकनमें उद्यम करनेवाला वह मनुष्य रहै ॥ १० १॥ कफी अधिकतावाले गुल्ममें बवासीर संग्रहणी पथरी इन्होंके चिकित्सितोंमें कहेहुये खार युक्त करने योग्य हैं।।
देवदारुत्रिवृदन्तीकटुकापञ्चकोलकम् ॥१०२॥ स्वर्जिकायावशूकाख्यौ श्रेष्ठापाठोपकुञ्चिकाः॥ कुष्टं सर्पसुगन्धां च द्वयक्षाशं पटुपञ्चकम् ॥१०३॥ पालिकं चूर्णितं तैलवसादधिघृताप्लुतम् ॥ घटस्यान्तः पचेत्पक्वमग्निवर्चे घटे च तम् ॥ १०४ ॥ क्षारं गृहीत्वा क्षीराज्यतक्रमद्यादिभिः पिबेत् ॥ गुल्मोदावर्त्त वर्माशोजठरग्रहणीकृमीन् ॥ १०५॥ अपस्मारगरोन्मादयोनिशुक्रामयाश्मरीः ॥ क्षारोऽगदोऽयं शमयेद्विषं चाखुभजङ्गाजम् ॥ १०६ ॥
और देवदार निशोत जमालगोटाको जड कुटकी सोंठ चव्य चीता पीपल पीपलामूल॥१०॥ साजीखार जवाखार त्रिफला पाठा कलोंजी कूठ मुंगसवेल ये सब दो दो तोले लेबै और पांचों नमक ॥ १०३ । चार तोले इन्होंके चूर्णको तेल वसा दही इन्होंसे संयुक्त कर घडेके भीतरही पकावै, जब अग्निके वर्णके समान घडा हो जाये तब ॥ १०४ ।। तिस खारको ग्रहण कर दूध घृत तक मदिरा आदिके संग पीवै, यह गुल्म उदावर्त वर्मरोग बवासीर पेटरोग ग्रहणी दोष कृमिरोग
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