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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६३०) ____ अष्टाङ्गहृदथेऔर भिलावे ८ तोले लघुपंचमूल ४ तोले ॥ ७९ ॥ इन्होंको २५६ लोले पानीम पकावै जब ६४ तोले शेष रहै तब ६४ तोले घत ६४ तोले दूध मिलाके पकावै और एक एक तोले प्रमाणसे ।। ८० ।। मनियारीनमक हींग सेंधानमक जवाखार कचूर बायविडंग चीता रायशण मुलहटी वच पीपल झूठ इन्होंकरके संयुक्त करै ।। ८१॥ यह भल्लातक घृत कफके गुल्मको अतिशयसे नाशताहै और प्लीहरोग पांडुरोग श्वास संग्रहणी खांसी इन्होंको जीतताहै ॥८२॥ पीछे इस रोगीके गुल्ममें और समस्त देहमें स्वेदको आचरित करै ॥ सर्वत्र गुल्मे प्रथमं स्नेहस्वेदोपपादिते ॥ ८३ ॥ या क्रिया क्रियते याति सा सिद्धिं न विरूक्षिते ॥ और सबप्रकारके गुल्ममें प्रथम स्नेह और स्वेदकरके उपपादित कियेमें ॥ ८३ ॥ जो क्रिया करी जातीहै वह सिद्धिको प्राप्त होतीहै और रूक्षितरूप गुल्ममें और देहमें जो क्रिया करी मातीहै वह सिद्धिको प्राप्त नहीं होती ॥ स्निग्धस्विन्नशरीरस्य गुल्मे शैथिल्यमागते ॥ ८४॥ यथोक्तांध टिकां न्यस्यगृहीतऽपनयेच्च ताम् ॥ वस्त्रान्तरं ततःकृत्वा छिन्यागुल्मं प्रमाणवित् ॥ ८५ ॥ विमार्गाजपदादशैर्यथालाभं प्रपडियेत् ॥प्रमृज्याद्गुल्ममेवैकं न त्वन्त्रहृदयं स्पृशेत् ॥८६॥ और स्निग्ध तथा स्विन्न शररिवाले मनुष्य के शिथिलभावको प्राप्तहुये गुल्ममें ॥ ८४ ॥ यंत्रविधिमें कहीहुई घटिकाको प्रयुक्त करै और गृहीत किये गुल्ममें तिस वटिकाको दूर करै पीछे वस्त्रके व्यवधान करके प्रमाणको जाननेवाला वैद्य गुल्मको छेदित करै ॥ ८५ ॥ पीछ काष्ठके बने हुए और शस्त्रके आकृतिवाले यंत्रसे यथायोग्य गुल्मको प्रपीडित करे, और शुद्ध करै परंतु जैसे हृदयके आंतको स्पार्शत नहीं करै इस प्रकार करै ।। ८६ ॥ तिलैरण्डातसीबीजसर्षपैः परिलिप्य च ॥ श्लेष्मगुल्ममयस्पात्रैः सुखोष्णैः स्वेदयेत्ततः॥ ८७॥ तिल अरंड अलसीके बीज सरसों इन्होंकरके परिलेपित कर पश्चात् कफके गुल्मको सुखपूर्वक गरम किये लोहेके पात्रोंकरके स्वेदित करै ॥ ८७ ॥ एवं च विसृतं स्थानात्कफगुल्मं विरेचनैः ॥ सस्नेहैर्वस्तिभिश्चैनं शोधयेदशमूलकैः ॥ ८॥ : इस प्रकारकरके स्थानसे चलेहुये कफके गुल्मको स्नेहसे संयुक्त किये जुलाबों. करके तथा बस्तियोंकरके तथा दशमूलकरके शोधित करै ।। ८८ ॥ पिप्पल्यामलकद्राक्षाश्यामायैः पालिकैः पचेत् ॥ एरण्डतेलहविषोःप्रस्थौ पयसि शगुणे ॥ ८९॥ सिद्धोऽयं मिश्रकः स्नेहो For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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