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(६००) . अष्टाङ्गहृदये- .
पैत्ते युञ्जीत शिशिरं सेकलेपावगाहनम्॥५॥पिबेद्वरी गोक्षुरकं विदारी सकसेरुकाम्॥तृणाख्यं पञ्चमूलञ्च पाक्यं समधुशर्करम् ॥६॥वृषकं त्रपुरारुलट्वाबीजानि कुंकुमम् ॥ द्राक्षाम्भोभिः पिबेत्सर्वान्मूत्रघातानपोहति ॥ ७ ॥ एरुिवीजयष्ट्याह्वदार्वीर्वा तण्डुलाम्बुना ॥तोयेन कल्कं द्राक्षायाः पिबेत्पर्युषितेन वा ॥८॥
और पित्तके मूत्रकृच्छ्रमें शीतलरूप सेंक लेप स्नानको प्रयुक्त करै ।। ५॥ अथवा शतावरी गोखरू विदारीकंद कसेरू तृण पंचमूलके काथको शहदसे संयुक्त कर पीवै ॥ ६ ॥ पाषाणभेद दोनों काकडी कसुंभके बीज केशर इन्होंके दाखोंको पानीके संग पावै यह सबप्रकारके मूत्राघातोंको नाशताहै ॥ ७ ॥ काकडीके बीज मुलहठी दारु हलदी इन्होंको चावलोंके पानी के संग पावै, अथवा दाखोंके कल्कको रात्रिमात्र स्थित रहे चावलोंके पानकि संग पीवै ॥ ८॥ कफजे वमनं स्वेदं तीक्ष्णोष्णकटुभोजनम् ॥ यवानां विकृतीः क्षारं कालशेयश्च शीलयेत् ॥९॥ पिबेन्मयेन सूक्ष्मैलां धात्री फलरसेन वासारसास्थिश्वदंष्ट्रलाव्योषंवा मधुमत्रवत्॥१०॥ स्वरसं कण्टका- वा पाययेन्माक्षिकान्वितम् ॥ शितिवार कबीजं वा तक्रेण श्लक्ष्णचूर्णितम् ॥११॥धवसप्ताहकुटजंगुडूची चतुरङ्गुलम्।कुटकैलाकरजं च पाक्यं समधुसाधितम्॥१२॥ तैवा पेयां प्रवालं वा चूर्णितंतण्डुलाम्बुना।सतैलं पाटलाक्षारं सप्तकृत्वोऽथवा शृतम् ॥१३॥ पाटलीयावशूकाभ्यां पारिभद्रन्तिलादपि ॥क्षारोदकेन मदिरांत्वगेलोषकसंयुताम् ॥ १४ ॥ पिवेद्गुडोपदंशान्वा लियादेतान्पृथक्पृथक् ॥
कफके मूत्रकृच्छ्रमें वमन और स्वेद तीक्ष्ण गरम कडुआ भोजन जवोंकी विकृति और कालशेय अर्थात् दहीमें दुगुना पानी मिलायाहुआ तक्रविशेष, जवाखारका अभ्यास करै ।। ९ ॥ छोटी इलायचीको मदिराके संग अथवा आँवलाके फलोंके रसके संा पीवै अथवा कमलगट्टेकी गिरी गोखरू इलायची सूंठ मिरच पीपलको शहद और गोमूत्रसे संयुक्त कर पावै ॥ १० ॥ अथवा कटेहलीके स्वरसको शहदमें मिलाके पीवै अथवा महीन पीसे हुये करंजुआके बीजोंको तक्रके संग पीवै ॥११॥ अथवा धवके फूल शातला कूडा गिलोय अरंड कुटकी इलायची करंजुआ इन्होंके काथको शहदसे संयुक्त कर पावै ॥ १२ ॥ अथवा धवके फूलों आदि करके करी हुई पेयाको पावै अथवा चूर्णित किये मूंगेको चावलोके पानीके संग पीवै अथवा सात ७ बार झिरेहुये आँवलाके खारको तेलके
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