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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४८६) अष्टाङ्गहृदयेदधिमस्त्वारनालाम्लफलाम्बुमदिराः पिबेत् । दहीका पानी कांजी खट्टे फलोंका पानी मदिरा इन्होंको प्रायताकरके वातकी खाँसीमें पीवै ।। पित्तकासे तु सकफे वमनं सर्पिषा हितम् ॥२५॥ तथा मदन काश्मय॑मधुकक्कथितै लैः। फलयष्ट्याह्नकल्कैर्वा विदारीक्षुरसाप्लुतैः ॥ २६ ॥ और कफकरके युक्त हुई पित्तकी खांसीमें घृतकरके वमन करना हितहै ॥ २५ ॥ अथवा मैनफल कंभारी मुलहटीमें कथितकिये जलोंकरके और मैनफल और कल्कों करके अथवा विदारीकंद और ईखके रससे भिगोये हुये पूर्वोक्त कल्कों करके वमन करना हितहै ॥ २६ ॥ पित्तकासे तनुकफे त्रिवृतां मधुरैयुताम् । ... युंज्याद्विरेकाय युतांघनश्लेष्मणि तिक्तकैः॥ २७॥ सूक्ष्मकफवाली पित्तकी खांसीमें मधुरपदार्थोसे युक्त की निशोथको जुलाबके अर्थ प्रयुक्त करै और करडे कफवाली पित्तकी खांसीमें कडवे पदार्थोंसे युक्तकरी निशोथको जुलाबके अर्थ देवै २७॥ हृतदोषो हिमं स्वादु स्निग्धं संसर्जनं भजेत् ॥ घने कफे तु शिशिरं रूक्षं तिक्तोपसंहितम् ॥ २८॥ और सूक्ष्मकफवाली पित्तकी खांसीमें जुलाबके लगनेके पश्चात् शीतल स्वादु चिकनी पेया आदि क्रमको सेवै और कररे कफवाली पित्तकी खांसीमें शीतल रूखी और कडुई पेया आदि क्रमको सेवै ॥ २८॥ लेहः पैत्ते सिताधात्रीक्षौद्रद्राक्षाहिमोत्पलैः। सकफे साब्दमरिचः सघृतः सानिले हितः॥२९॥ मृद्वीकार्द्धशतं त्रिंशत्पिप्पलीः शर्करापलम् । लेहयेन्मधुनागोर्वा क्षीरपस्य शकृद्रसम् ॥ ३०॥ पित्तकी खाँसीमें मिसरी आंवला शहद दाख चंदन कमलका लेह हितहै और कफसहित पित्तकी खांसीमें नागरमोथा और मिरचसे संयुक्त लेह हितहै, और वातसे सहित पित्तकी खांसीमें घृतसहित लेह हितहैं ॥ २९ ।। मुनक्कादाख ५० और पीपल ३० खांड ४ तोले इन्होंको शहदमें मिलाके चाटै अथवा दूधको पीनेवाले गायके बछडेके गोबरके रसमें शहद मिलाके चाटै ॥३०॥ त्वगेलाव्योषमृद्वीकापिप्पलीमूलपौष्करैः ॥ लाजमुस्ताशठी रास्नाधात्रीफलविभीतकैः ॥ ३१ ॥ शर्कराक्षौद्रसभिलेहो हृद्रोगकासहा ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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