________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(४६८)
अष्टाङ्गहृदयेसिद्धं शुण्ठीबलाव्याघ्रीगोकण्टकगुडैः पयः ॥११२॥ शोफमूत्र शकृद्वातविवन्धज्वरकासजित् ॥ वृश्चीवबिल्ववर्षाभूसाधितं ज्वरशोफनुत् ॥ ११३ ॥ शिंशपासारसिद्धं वा क्षीरमाश - ज्वरापहम् ॥
और सूंठ, खरैटी, कटेहली, गोखरू, गुड करके सिद्धकिया हुवा दूध ।। ११२ ॥ शोजा, मूत्र, विष्ठाका बंश, वर, खांसीको नाशता है, और छोटीसांठी, बेलगिरी, बडी सांठीमें सिद्ध कियाहुवा दूध ज्वर, शोजा, दूर करता है । ११३॥ और सीसमके गुदमें सिद्ध कियाहुवा दूध शीबही ज्वरको नाशता है ।। निरूहस्तु वलं वह्नि विचरत्वं मुदं रुचिम् ॥ ११४ ॥ दोषे युक्तःकरोत्याशु पक्के पक्काशयं गते ॥ पित्तं वा कफपित्तं वा पकाशयम हरेत् ॥११५॥ स्टेसनं त्रीनपि मलान्धरितः पकाशयाश्रयान् ॥
और निरूहवस्तीकर्म बल, बहि, ज्वरका नाश आनंद रुचिको करताहै ।। ११४ ॥ और निरूहयुक्त किया हुवा पकेहुए दोषमें अथवा पक्काशयमें प्राप्त होनेसे पक्काशयमें गत पित्त कफपित्तको नाशता है ॥ ११५ ॥ और ऐसेही इन्होंको जुलाब दी हुईभी नाशती है और बस्ति कर्म किया हुवा पकाशयके आश्रयदुर तीनों दोपोंको नाशताहै ॥
प्रक्षीणकशापित्तस्य त्रिकष्टकटिग्रहे ॥ ११६ ॥
दीताग्नेशकृतः प्रयुंजीतानुवासनम् ॥ और कफक्षीणवाले रोगीके कटिके समीप त्रिकस्थान, पीट, कटिका ग्रह हा तिसके ॥ २१६ ॥ और दीप्तअग्निवाले तथा बंधविष्ठावाले पुरुषके अनुवासनबस्तिको युक्त करै ॥ पटोलनिम्बच्छदनकटुकाचतुरङ्गुलैः॥११७॥ स्थिरावलागो. क्षुरकमदनोशारवालकैः ॥ पयस्योंदके कार्य क्षीरशेष विमिश्रितम् ॥११॥ कल्कितर्मुस्तमदनकृष्णामधुकवत्सकैः॥ वस्तिं मधुघृताभ्याञ्च पीडयेज्ज्वरनाशनम् ॥ ११९ ॥ परवल, नींबके पत्ते, कुटकी, अमलतास ॥ ११७ ॥ शालपर्णी, खरेहटी, गोखरू, मैंनफल, खश, नेत्रवाला,इन औषधोंका काथ आधेजलवाले दूधमें बनावे जब दूध मात्र बाकी रहै तब तिसको मिलालेवे ॥ ११८ ।। नागरमोथा, मैनफल, पीपल, मुलहठी, कूडाकी छाल इन्होंका कल्ककरके युक्त शहद और वत करके दीहुई बस्ति ज्वरको नाशतीहै ॥ ११९ ॥
For Private and Personal Use Only