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अष्टाङ्गहृदयेहोता है ॥ १८ ॥ धातुके क्षयस कुपितहुये वायुमें अथवा दोषोंकरके आच्छांदित मार्गवाला वायुमें और वह आवृतमार्गवाला वायु वातसे आच्छादित दोषोंके लक्षणोंको आपही दिखाता है ॥१९॥ इसीवास्ते क्षणमात्रसे क्षीणहुवा क्षणमात्रसे पूरितहुआ वह वायु कष्टसाध्यपनेको सेवता है
कालेनोपेक्षिताः सर्वे यद्यान्ति मधुमेहताम् ॥२०॥ मधुरं यच्च सर्वेषु प्रायो मध्विव मेहति ॥सर्वेपि मधुमेहाख्या माधु
Uच तनोरतः ॥ २१॥ अविपाकोरुचिश्छर्दिनिंद्राकासः सपीनसः॥ उपद्रवाः प्रजायन्ते मेहानां कफजन्मनाम् ॥२२॥ बस्तिमेहोनयोस्तोदो मुष्कावदरणं ज्वरः ॥ दाहस्तृष्णाम्लको मूर्छा विड्भेदः पित्तजन्मनाम् ॥ २३ ॥ वातिकानामुदा वर्त्तकण्ठहृद्ग्रहलोलताः ॥ शूलमुन्निद्रता शोषः कासः
श्वासश्च जायते॥ २४॥ . और त्यागे हुये सबप्रकारके प्रमेह कालकरके मधुप्रमेहपनेको प्राप्त होजाते हैं ॥ २० ॥ जिससे सबोंमें प्रायताकरके शहदकी समान मधुर मूत्रको मूतता है और शरीरके मधुरपनेसे सब प्रमेह मधुप्रमेहसंज्ञावाले कहे हैं ।। २१ ॥ कफसे उपजे प्रमेहोंके अविपाक, अरुचि, छर्दि, नींद, खांसी, पीनस ये उपद्रव उपजते हैं ॥२२॥ पित्तसे उपजे प्रमेहोंके बस्ति और लिंगमें चबका और पोतोंका दारुणज्वर, दाह, तृषा, खट्टापन, मूर्छा, विड्भेद ये उपद्रव उपजते हैं ॥ २३ ॥ वातसे उपजे प्रमेहोंके उदावर्त, और कंठ तथा हृदयका बंध, चंचलता, शूल, उग्र नींद,शोष, खांसी, श्वास, ये उपद्रव उपजते हैं ॥ २४ ॥
शराविका कच्छपिका जालिनी विनताऽलजी ॥ मसूरिका सपंपिका पुत्रिणी सविदारिका ॥ २५॥ विद्रधिश्चेति पिटिकाः प्रमेहोपेक्षया दशासन्धिमर्मसु जायन्ते मांसलेषु च धामसु॥२६॥ शराविका, कच्छपिका, जालिनी, विनता, अलजी, मसूरिका, सर्षपिका, पुत्रिणी, और विदारिका ॥ २५ ॥ विद्रधि ये दश पिटिका प्रमेहोंकी नहीं चिकित्साकरनेसे संधि मर्मों में और अत्यंत मांसवाले स्थानोंमें उपजती हैं ॥ २६ ॥
अन्तोन्नता मध्यनिम्ना श्यावा क्लेदरुजान्विता ॥ शरावमान संस्थाना पिटिका स्याच्छराविका ॥२७॥ अवगाढार्तिनिस्तोदा महावस्तुपरिग्रहा ॥ श्लक्ष्णा कच्छपपृष्ठाभा पिटिका कच्छपी मता ॥ २८ ॥ स्तब्धा शिराजालवती स्निग्धस्रावा
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