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निदानस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (३८९) दोष आदिके वेगोंके प्रवर्तनसे और अधो वात, मूत्र विष्ठाके वेराको धारणेसे तथा बढानेसे ॥ १२ ॥ ज्वर, गुल्म, अतिसार, आमदोष, ग्रहणीरोग, शोजा, पांडु करके कर्षण करनेसे, और विषमरूप चेष्टाओंसे और स्त्रियोंके ॥ १३ ॥ कचागर्भके पडनेसे, और गर्भकी वृद्धिके प्रपीडनसे इसी प्रकारसे अन्य कारणोंकरके कुपित हुआ अपानवायु मलको ॥ १.४ ॥ गुदाकी अभिस्यंदितमूर्तिवाली तीन बलियोंमें धारण करता है तब अर्श अर्थात् बवासीर रोग उपजते हैं तिस बवासीर रोगके पूर्वरूपका लक्षण कहते हैं मंद अग्नि ॥ १५ ॥ विष्टंभ सक्थिकी शिथिलता पीडियोंका उद्वेष्टन भ्रम अंगका शिथिलपना नेत्रोंमें शोजा विष्टाका भेद अथवा बंधा ॥ १६ ॥ विशेषताकरके नाभिके नीचे विचरताहुआ और प्रचुर और मूढ और शूलसे संयुक्त और परिकर्तनसे युक्त अपानवायु शब्दको करताहुआ कष्टसे निकसताहै ॥ १७ ॥ आंतोंका बोलना पेटमें गुडगुडाशब्द और माडापना और बहुतसा डकारोंका आना, और बहुतसा मूत्रका आना, और अल्पविष्ठाका आना और श्रद्धा और अम्लरूप धूमा ॥ १८ ॥ शिर पृष्टभाग छातीमें शूल और आलस्य वर्णका बदलजाना इंद्रियोंका दुर्बलपना और क्रोध और दुःखा॥१९॥ और ग्रहणीदोष पांडु गुल्म उदररोगकी आशंका होती है ।
एतान्येव विवर्द्धन्ते जातेषु हतनामस ॥२०॥ निवर्तमानोऽपानो हि तैरधोमार्गरोधतः ॥ क्षोभयन्ननिलानन्यान्सर्वेन्द्रिय शरीरगान् ॥ २१॥ तथा मूत्रशकृत्पित्तकफान्धातूंश्चसाशयान् ॥ मृदात्यग्निं ततः सर्वो भवति प्रायशोऽर्शसः॥ २२ ॥ कृशो भृशं हतोत्साहो दीनःक्षामोऽतिनिष्प्रभः॥ असारो विगतच्छायो जन्तुजुष्ट इव द्रुमः ॥ २३ ॥ कृत्स्नरुपद्रवैर्घस्तो। यथोक्तैर्मर्मपीडनैः॥ तथा कासपिपासास्यवैरस्यश्वासपीनसैः ॥२४॥क्लमाङ्गभङ्गवमथुक्षवथुश्वयथुज्वरैः। क्लैब्यवाधिर्यतभिर्य शर्कराश्मरिपीडितः ॥ २५॥ क्षामभिन्नस्वरो ध्यायन्मुहुः ष्ठीवन्नरोचकी ॥ सर्वपस्थिहन्नाभिपायुवङ्क्षणशूलवान् ॥ ॥ २६॥ गुदेन स्रवता पिच्छा पुलाकोदकसन्निभाम् ॥ विबद्ध मुक्तं शुष्का पक्कामं चान्तरान्तरा ॥ २७॥ पाण्डुपीतं हारद्रक्तं पिच्छिलं चोपवेष्यते ॥ उत्पन्न हुये अर्शरोगोंमें ग्रहणीदोष पांडुरोग गुल्म उदररोग बढते हैं ॥ २० ॥ तिन अर्शरोगोंकरके अधोमार्गके रुकजानेसे ऊपरको प्राप्त हुआ अपानवायु सब इंद्रिय और शरीरमें प्राप्तहुये अन्यपवनोंको क्षोभित करताहुआ ॥२१॥ तथा मूत्र, विष्ठा, पित्त, कफ, धातु, आशयको क्षोभित करताहुआ अग्निको मंद करता है, तिस अग्निके मंदपनेसे प्रायताकरके ॥ २२ ॥अर्शरोगी अत्यंत
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