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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निदानस्थानं भाषाटीकासमेतम् ।। (३६१) दोष और कालमें बल तथा अबल इन्होंसे ज्वर पांच प्रकारका जानना ॥ १६ ॥ और प्रकारसे बहुतसे सन्निपात करके ज्वरका उपदेश करतेहैं और संतत, सतत, अन्येद्यु, तृतीयक, चतुर्थक ये ज्वरके भेद हैं ॥ १७ ॥ धातुमूत्रशकृद्वाहिस्रोतसां व्यापिनो मलाः ॥ तापयन्तस्तनुं सर्वां तुल्यदृष्यादिवर्धिताः॥५८॥ बलिनो गुरवःस्तब्धा वि शेषेण रसाश्रिताः ॥ सन्ततं निष्प्रतिद्वन्द्वा ज्वरं कुर्युः सुदुः - सहम् ॥ ५९॥ धातु, मूत्र, विष्ठा इन्होंको बहनेवाले स्रोतोंमें व्याप्त हुये और सकल शरीरको तापित करतेहुये और तुल्यरूप दूष्यआदिकरके बढेहुये ॥५८ ॥ और बलवाले और भारे तथा गर्वित और विशेष करके रसधातुमें आश्रितहुये और प्रत्यनीकसे रहित वातआदिदोष दुस्सहरूप संततज्वरको करते हैं ॥ ५९॥ मलं ज्वरोष्मा धातून्वा स शीघ्रं क्षपयेत्ततः॥ सर्वाकारं रसादीना शुद्धयाऽशुद्धयापि वा क्रमात् ॥६० ॥ वातपित्तकफैः सप्तदशद्वादशवासरान् ॥प्रायोऽनुयाति मर्यादां मोक्षाय च वधाय च ॥६१॥ इत्यग्निवेशस्य मतं हारीतस्य पुनः स्मृतिः।। द्विगुणा सप्तमी यावन्नवम्येकादशी तथा॥६२॥ एषा त्रिदोष मर्यादा मोक्षाय च वधाय च ॥ ज्वरकी गरमाई मलको अथवा धातुओंको शीघ्र क्षपित करती है तब तिस धातुक्षपणसे रस आदि धातु, मूत्र, विष्टादोष आदि सब आकारको निःशेष कर पछि शुद्धि करके अथवा अशुद्धि करके क्रमसे ॥ ६० ॥ वात, पित्त, कफ इन्होंकरके सात, दश वा बारह दिनोंतक संततज्वर मर्यादाको प्राप्त होता है, और छोडनेके वा मारनेके अर्थ होता है ॥ ६१ ॥ यह अग्निवेशमुनिका मत है और हारीतमुनिका ऐसे स्मरण है कि चौदह तथा अठारह तथा बाईस इन दिनोंतक ॥ ६२ ॥ संततज्वर छोडनेके वा मारनेके अर्थ रहता है यही त्रिदोषकी मर्यादा है। शुद्धयशुद्धौ ज्वरःकालं दीर्घमप्यनुवर्तते।६।कृशानां व्याधिमु- . क्तानां मिथ्याहारादिसेविनाम्॥अल्पोपि दोषोदृष्यादेलब्ध्वान्यतमतोबलम्॥६॥सपिपक्षो ज्वरंकुर्याद्विषमंक्षयवृद्धिभाक। और शुद्धिकरके सहित अशुद्धि संततज्वर दीर्घकालतक रहता है ॥६३॥ कृश तथा व्याधिसे छूटेहुये और मिथ्याभोजनआदिको सेवित करतेहुये मनुष्यों के होनबलवाला अथवा महानबलवाला For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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