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(३४०)
अष्टाङ्गहृदये- . दीनं भीतं द्रुतं त्रस्तं रूक्षामङ्गलवादिनम् ॥ शस्त्रिणं दण्डिनं षण्ढं मुण्डश्मशुं जटाधरम् ॥ २ ॥ अमङ्गलाह्वयं क्रूरकर्माणं मलिनं स्त्रियम्।।अनेकव्याधितं व्यङ्गं रक्तमाल्यानुलेपनम्॥३॥ तैलपङ्काङ्कितं जीर्णविवर्णाट्टैकवाससम् ॥ खरोष्ट्रमाहिषारूढं काष्ठं लोष्टादिमर्दिनम् ॥ ४ ॥ नानुगच्छेद्भिषग्दूतमाह्वयन्तं च दूरतः॥ दोन अर्थात् दरिद्रवाला और भीत अर्थात् डरनेवाला और दूत अर्थात् शीघ्रता करनेवाला और उद्वेगको प्राप्तहुआ और कठोर बोलनेवाला और अमंगल अर्थात् रोगी मरेगा ऐसे वचनको बोलनेवाला और शस्त्रको धारण करनेवाला और दंडको धारण करनेवाला और हीजडा और मुंडी हुई डाढीवाला और जटाको धारण करनेवाला ॥ २ ॥ और अमंगलरूपनामवाला और होनअंग. वाला और क्रूरकर्म करनेवाला और मलीन और स्त्री और अनेक प्रकारकी व्याधिसे संयुक्त और लालमाला, लालचंदनआदिको धारण करनेवाला ॥ ३ ॥ तेल और कीचडसे लेपितहुआ और पुराना वर्णसे रहित, गीला, गिनतीमें एक वस्त्रवाला और गधा ऊंट भैंसेपै चढाहुआ और काष्ठ लोहाआदिको मर्दन करनेवाला ॥ ४ ॥ दूरसे बुलानेवाले दूतके संग वैद्य गमन न करै ।।
अशस्तचिन्तावचने नग्ने छिन्दति भिन्दति॥५॥जुबाने पावकं पिण्डान्पितृभ्यो निर्वपत्यपि।।सुप्ते मुक्तकचेभ्यक्ते रुदत्यप्रयते तथा ॥६॥ वैये दूता मनुष्याणामागच्छन्ति मुमूर्षताम् ॥ विकारसामान्यगुणे देशे कालेऽथ वा भिषक् ॥७॥ दृतमभ्या
गतं दृष्ट्वा नातुरं तमुपाचरेत् ॥ बुरी चिंता और बुरे वचनको कहताहुआ, नंगा और छेदन तथा भेदन करताहुआ ॥ ५ ॥ अग्निमें हवन करताहुआ,पितरोंके अर्थ पिंडको देताहुआ शयन करताहुआ ऊंघताहुवा और बालोंको खोलेहुये और तेलआदिकी मालिश कियेहुये और रुदन करताहुआ और सावधानपनेसे रहित ॥ ६ ॥ ऐसे वैद्यके पास मरनेवाले मनुष्योंके दूत आके प्राप्त होतेहैं, और विकारके समान गुणवाले देशमें अथवा कालमें वैद्य ॥ ७ ॥ सन्मुख आवतेहुये दूतको देख रोगीको चिकित्सा नहीं करे ।।
स्पृशन्तौ नाभिनासास्यकेशरोमनखद्विजान् ॥ ८॥ गुह्यपृष्ठ स्तनग्रीवाजठरानामिकांगुलीः ॥ कार्पासबुससीमास्थिकपाल मुशलोपलम् ॥९॥ मार्जनीशूर्पलान्तभस्माङ्गारदशातुषान् ।। रज्जूपानन्तुलापाशमन्यद्वाभग्नविच्युतम् ॥ १०॥ तत्पूर्वदर्शने दूता व्याहरन्ति मरिष्यताम् ॥
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