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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शारीरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । ष्ठं निगूढाः सन्धयो दृढाः ॥११३ ॥ धीरः स्वरोऽनुनादी च वर्णः स्निग्धः स्थिरप्रभः ॥ स्वभावजं स्थिरं सत्त्वमविकारि विपत्स्वपि ॥ ११४ ॥ उत्तरोत्तरसुक्षेत्रं वपुर्गर्भादिनीरुजम् ॥ आयामज्ञानविज्ञानैर्वर्द्धमानं शनैः शुभम् ॥ ११५ ॥ इति सर्वगुणोपेते शरीरे शरदां शतम् ॥ आयुरैश्वर्यमिष्टाश्च सर्वे भावाः प्रतिष्ठिताः॥ ११६॥ चिकने कोमल सूक्ष्म और अनेकमूलोंवाले स्थिर बाल होवें ॥ १०७ ॥ ऊंचा मस्तक और आधाचन्द्रमाके समान मिलेहुये कनपटी होवै और ठिंगने तथा ऊपरको ऊंचे और बड़े और अत्यन्त मांसवाले दोनों कान ॥ १०८ ॥ प्रकटरूप कृष्ण और सफेदभागवाले सुन्दर गठीले और घनरूपपलकोंवाले नेत्र और ऊंची और बडेश्वासको लेनेवाली और पुष्ट तथा कोमल तथा समान नासिका ॥ १०९॥ लाल और बाहरको नहीं निकसेहुये दोनों होठ बडी और आधिकतासे रहित दोनों ठोडी और बडा मुख और घनरूप चिकने और कोमल स्पर्शवाले सफेद और समान दंत ॥ ११० ॥ लाल और विस्तृत और महीन जीभ और मांसवाला बडा चिबुक अंग और ठिंगनी तथा घन और गोल ग्रीवा और ऊंचे तथा पुष्ट दोनों कन्धे ॥ १११ ॥ दक्षिणकी तर्फ आवर्तवाला और गढनाभिवाला और सम्यक् प्रकारसे ऊंचा - पेट सूक्ष्म लाल और ऊंचे नखोंवाला स्निग्ध और तांबेके समान मांसवाला ॥ ११२ ॥ और लंबी और छिद्रसे रहित अंगुलियोंवाला और विस्तृत हाथ तथा पैर और गृढवंशवाला और बडा पृष्ठ और भीतरको प्राप्त हुई दृढ संघियां ॥ ११३ ॥ कृपणपनेसे रहित घंटाआदिकी तरह पीछेतक शब्द करनेवाला स्वर और स्निग्ध तथा स्थिरकांतिवाला वर्ण और स्वभावसे उपजा, और स्थिर और विपत्कालोमेंभी विकारको नहीं करनेवाले बलसे युक्त ॥ ११४ । साढे तीन हाथवाला जो शरीर संबंधी प्रकरण पीछे कहा तिससे लगायत उत्तरोत्तर क्रमसे क्षेत्रकी तरह क्षेत्र और गर्भआदि अवस्थाओंकरके रोगसे रहित और लौकिक व्यवहार तथा शास्त्रका व्यवहार आदिकरके विस्तृत हौले होले वृद्धिको प्राप्त हुआ शरीर श्रेष्ठ होता है ॥ ११५ ।। इस प्रकारकरके सब गुणोंसे संयुक्त शरीरमें सौ वर्षकी आयु है, तिसमें ऐश्वर्य मनोवांछित सवभाव प्रतिष्टित होते हैं ॥ ११६ ॥ त्वग्रक्तादीनि सत्त्वान्तान्यग्राण्यष्टौ यथोत्तरम् ॥ बलप्रमा- . णज्ञानार्थ साराण्युक्तानि देहिनाम् ॥ ११७ ॥ सारैरुपेतः सर्वैः स्यात्परं गौरवसंयुतः ॥ सर्वारम्भेषु चाशावान्सहि ष्णुः सन्मतिः स्थिरः ॥ ११८ ॥ त्वचा रक्तआदिवाले सत्वके अन्तवाले और उत्तर उत्तर क्रमसे श्रेष्ठ आठ मनुष्योंके शरीरमें बलके प्रमाणके ज्ञानके अर्थ त्वचा, रक्त, मांस, मेद, हड्डी, मज्जा, वीय, सत्व आठ सार कहे है । । For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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