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शारीरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (२७९) नववें महीनेसे पहलेही गर्भिणी स्त्री सूतिका स्थानमें आश्रित रहै परंतु सुंदर देशमें बनेहुवे और सामग्रियोंकरके संपन्न सूतिकागृहमें पुष्यनक्षत्रके दिन प्रवेश करै ।। ७५ ॥
तत्रोदीक्षेत सा सूतिं सूतिका परिवारिता ॥
अद्यश्वःप्रसवे ग्लानिः कुक्ष्यक्षिश्लथता क्लमः ॥७६ ॥ तहां स्त्रियोंकरके परिवारित हुई वह मूतिका स्त्री बालक होनेके समयको देखती रहै और तिसी दिनमें व अगले दिनमें बालकको जन्मानेवाली सूतिकाके लक्षण कहते हैं ग्लानि, कुक्षि और नेत्रोंकी शिथिलता, श्रम, || ७६ ॥
अधोगुरुत्वमरुचिः प्रसेको बहुमूत्रता ॥
वेदनोरूदरकटीपृष्ठहृदस्तिवङ्क्षणे ॥ ७७ ॥ नीचेके अंगोंका, भारीपन, अरुचि, प्रसेक, मूत्रकी अधिकता और जांघ, पेट, कटी, पीठ, हृदय, बस्ति, यौनिसंधिमें पीडा ॥ ७७ ॥
योनिभेदरुजास्तोदस्फुरणस्रवणानि च ॥
आवीनामनुजन्मातस्ततो गोंदकस्रुतिः॥ ७ ॥ योनिका भेद, योनिमें शूल, चमका, फुरना; झिरना ये सब उपजै पीछे गर्भको जन्मानेके समय उपजनेवाले शूलोंकी उत्पत्ति और योनिसे अत्यंत पानीका झिरना ये सब उपमैं तब बालकके . जन्ममें वही दिन अथवा अगला दिन जानना ।। ७८ ॥ ।
अथोपस्थितगर्भा तां कृतकौतुकमङ्गलाम् ॥ . हस्तस्थपुन्नामफलां स्वभ्यक्तोष्णाम्बुसेचिताम् ॥७९॥ पीछे कौतुकरूप मंगलआदिसे संयुक्त और हाथमें पुरुषनामक फलको धारण करनेवाली और अच्छीतरह अभ्यक्त हुई और गरमपानीसे सेचित हुई उपस्थित गर्भवाली स्त्रीको ॥ ७९ ॥
पाययेत्सघृतां पेयां तनौ भूशयने स्थिताम् ॥
आभुग्नसक्थिमुत्तानामभ्यक्तांगी पुनः पुनः॥८॥ घृतसे संयुक्त पेयाका पान कराना उचित है, पीछेको मलरूप पृथ्वीमें स्थित और जंघाओंको चौडीकरके बैठी हुई और सीधी और बारंबार अभ्यक्त किये अंगोंवाली गर्भिणीके ॥ ८० ॥
अधो नाभेर्विमृद्गीयात्कारयेज्जृम्भचंक्रमम् ॥
गर्भः प्रयात्यवागेवं तल्लिंगं हृद्विमोक्षतः॥८१॥ नाभिक अधोभागमें मर्दन करै और जंभाई और शीघ्र गमनभी करावे ऐसे कर्तव्य करके हृदयको त्यागकर गर्भ नीचेको आता है ।। ८१ ।।
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