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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६८) अष्टाङ्गहृदयेमासि मासि रजः स्त्रीणां रस स्त्रवति व्यहम् ॥ वत्सराबादशादूर्ध्वं याति पञ्चाशतः क्षयम् ॥७॥ महीनें महीनेमें रससे उत्पन्न होनेवाला रज स्त्रियोंके तीन दिनतक झिरता रहताहै, सो बारह चर्षकी अवस्थासे उपरांत झिरने लगता है और पचाश वर्षकी अवस्थामें पूरा होजाता है फिर नहीं गिरता ॥ ७॥ पूर्णषोडशवर्षा स्त्री पूर्णविंशेन सङ्गता॥ शुद्धे गर्भाशये मार्गे रक्ते शुक्रे निले हृदि ॥८॥ पूर्णरूप सोलह वर्षकी अवस्थावाली स्त्री पूरे बीसवर्षकी अवस्थावाले पुरुषके संग मैथुन करती है तब गर्भाशयमार्ग रक्त वीर्य बात हृदय इन्होंकी शुद्धि होनेसे ॥ ८ ॥ वीर्यवन्तं सुतं सूते ततो न्यूनाद्वयोः पुनः॥ रोग्यल्पायुरधन्यो वा गर्भो भवति नैव वा ॥९॥ वीर्यवान् अर्थात् सामर्थ्यवाले पुत्रको जनती है और जो इससे अल्प अवस्था वाले स्त्रीपुरुषों तो रोगी और अल्प आयुवाला और दरिद्री गर्भ उपजाता है अथवा गर्भ नहीं उपजाता है ।।९।। . वातादिकुणपग्रन्थिपूयक्षीणमलाह्वयम् ॥ - बीजासमर्थ रेतोत्रं स्वलिङ्गैर्दोषजं वदेत् ॥१०॥ ___ वात पित्त कफ संज्ञक, मुरदाकी गंधके समान गंधवाला, ग्रंथिरूप, रादरूप, क्षीणरूप, मूत्र और विष्ठारूप, वीर्य और स्त्रीका रक्त गर्भको नहीं उपजाता है और अपने अपने चिह्नोंकरके वातसंज्ञक, पित्तसंज्ञक, कफसंज्ञक, वीर्य और रक्तको देखकर कहै ॥ १० ॥ रक्तेन कुणपं श्लेष्मवाताभ्यां ग्रन्थिसन्निभम् ॥ पूयाभं रक्तपित्ताभ्यां क्षीणं मारुतपित्ततः॥ ११॥ __ और दुष्टहुये रक्त करके मुरदाके गंधके समान गंधवाला वीर्य और रक्त होता है और कफ वात्र करके ग्रंथिके आकार वीर्य और रक्त होजाता है वात और रक्तसे तथा पित्तकरके रादके समान कांतिवाला वीर्य और रक्त होजाता है बात और रक्तसे क्षीणरूप वीर्य और रक्त होजाता है ॥११॥ कृच्छ्राण्येतान्यसाध्यं तु त्रिदोषं मूत्रविप्रभम्॥ कुर्याद्वातादिभिर्दुष्टेस्वौषधं कुणपे पुनः॥१२॥ ये सब कष्टसाध्य हैं, मूत्र और विष्ठाके समान कांतिवाला और त्रिदोषसे उपजा वीर्य और रक्त असाध्य कहा है और वात आदिकरके दुष्टहुये वीर्यमें वात आदिकी शांति करनेवाले यथायोग्य औषध करने और मुरदेके गंधके समान गंधवाले वीर्य और रक्तमें ॥ १२ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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