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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६२) अष्टाङ्गहृदयेयह खार सबतर्फसे गमन करता हुआ शस्त्रसाध्य दोषोंको जडसे काटता है. गईहुई पीडावाले मनुष्यके दाहआदि कर्मको करके आपही शांत होजाता है ॥ २६ ॥ क्षारसाध्ये गदे छिन्ने लिखिते स्रावितेऽथवा ॥ क्षारं शलाकया दत्त्वा प्लोतमावृतदेहया ॥ २७ ॥ क्षारकरके साध्यरूप बवासीरआदिरोगको छिन्न लिखित स्रावित करके पीछे रूईके फोहेकरके लपेटीहुई शलाकासे खारको लगाकर ॥ २७ ॥ मात्राशतमुपेक्षेत तत्रार्श:स्वावृताननम् ॥ हस्तेन यन्त्रं कुर्वीत वर्मरोगेषु वर्मनी ॥ २८ ॥ सौ. १०० मात्रा कालतक स्थितरहै, बवासीररोगमें हाथकरके आच्छादित मुखवाले यंत्रको नियुक्त करै, और वर्त्मगतरोगोंमें नेत्रके दोनों पलकोंके ॥ २८ ॥ निर्भुज्य पिचुनाच्छाद्य कृष्णभागं विनिक्षिपेत् ॥ पद्मपत्रतनुः क्षारलेपो प्राणार्बुदेषु च ॥ २९ ॥ खोलके पछि रूईके फोहेसे कृष्णभाग अर्थात् नेत्रके तारेको आच्छादित कर खारको लगावे कमलके पत्तेके मुटाई जितना खारका लेप करै, नासिकाके अर्बुदआदिरोगोंमें ॥ २९ ॥ प्रत्यादित्यं निषण्णस्य समुन्नम्याग्रनासिकाम्॥ मात्रा विधार्यः पञ्चाशत्तद्वदसि कर्णजे ॥ ३० ॥ सूर्यके सन्मुख स्थितहुये मनुष्यको नासिकाके अग्रभागको उन्नमित कर पचास ५०मात्राकालतक खारको धारण करावै और कानमें उत्पन्नहुये अर्शमेंभी कमलके पत्तेके समान सूक्ष्म खारका लेप पचाश ५० मात्राकालतक धारण करावै ॥ ३० ॥ क्षारं प्रमाजनेनानु परिमृज्यावगम्य च ॥ सुदग्धं घृतमध्वक्तं तत्पयोमस्तुकाञ्जिकैः ॥ ३१ ॥ पछि वस्त्र आदिकरके खारको पोंछ और खारके स्थानको अच्छीतरह दग्धहुआ जान वृत और शहदका लेप करा पीछे दूध, दहीका पानी, कांजी ॥ ३१ ॥ निर्वापयेत्ततः साज्यैः स्वादुशीतैः प्रदेहयेत् ॥ अभिष्यन्दीनि भोज्यानि भोज्यानि क्लेदनाय च ॥ ३२ ॥ ये निर्वापित करै मधुर और शीतल औषधोंमें घृत मिलाके लेप कराव और क्लेदन करनेके अर्थ कफकारी पदार्थोका पान और भोजन करना योग्य है ॥ ३२ ॥ यदि च स्थिरमूलत्वारक्षारदग्धं नशीर्यते ॥ धान्याम्लबीजयष्ट्याह्वतिलैरालेपयत्ततः ३३ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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