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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम्। (२१७) घ्राणार्बुदार्शसामेकच्छिद्रा नाड्यंगुलद्वया ॥
प्रदेशिनीपरीणाहा स्याद्भगंदरयंत्रवत् ॥२०॥ नासिकामें ग्रंथि और नासिकामें स्पर्श होवे तो एकछिद्रसे संयुक्त और लंबाईमें दो अंगुलप्रमा‘णवाला और अंगूठाके समीपकी अंगुल के समान मुटाईसे संयुक्त और भगंदरयंत्रकी तरह ओष्ठकरके वर्जित नाडी यंत्र बनाना ॥ २० ॥
अंगुलित्राणकं दान्तं वारं वा चतुरंगुलम् ॥
द्विच्छिद्रं गोस्तनाकारं तद्वऋविवृतौ सुखम् ॥ २१ ॥ __ अंगुलित्राणकनामवाला यंत्र हाथीदांतका अथवा काष्टका बनायाहुआ और चार अंगुलप्रमाणसे संयुक्त और छिद्रोंसे संयुक्त और दो गायका थनके समान आकृतिवाला और मुखके प्रसारणेमें सुखरूप यंत्र बनाना यह दांतोंसे अंगुलीकी रक्षाके अर्थ है ॥ २१ ॥
योनित्रणेक्षणं मध्ये सुषिरं षोडशांगुलम् ॥
मुद्राबद्धं चतुर्भित्तमम्भोजमुकुलाननम् ॥ २२॥ मध्यभागमें छिद्रसे संयुक्त और सोलह अंगुलप्रमाणमें लंबाईसे संयुक्त और मुद्राकरके बँधाहुआ और चार पत्तोंवाला और कमलकी कलीके समान मुखबाला योनीके व्रणको देखनेके अर्थ यंत्र बनाना ॥ २२ ॥
चतुःशलाकमानातं मूले तद्विकसेन्मुखे ॥
यंत्रे नाडीव्रणाभ्यंगक्षालनाय षडंगुले ॥ २३ ॥ परन्तु मूलगत शलाकाको क्रमण करनेसे मुखमें प्रसृत हुआ बनाना और नाडीव्रणका अभ्यंग और क्षालनके अर्थ छः अंगुलोंकी लंबाईसे संयुक्त ॥ २३ ॥
बस्तियंत्राकृती मूले मुखेंगुष्ठकलायखे ॥
अग्रतोऽकर्णिके मूले निबद्धमृदुचर्मणी ॥ २४॥ और बस्तियंत्रकी आकृतिके समान आकृतिवाले और मूलमें तथा मुखमें क्रमसे अंगूठा और -मटरके समान छिद्रोंवाले और अग्रभागमें कार्णकासे रहित और मूलदेशमें योजित करी कोमल चर्म से संयुक्त दो यंत्र बनाने ॥ २४ ॥
द्विद्वारा नलिका पिच्छनलिका वोदकोदरे॥
धूमबस्त्यादियंत्राणि निर्दिष्टानि यथायथम् ॥ २५॥ जलोदरमें पानी झिरानके अर्थ दोनों तर्फको मुखोंवाली अथवा मोरकी पंखोंसे बनीहुई ऐसी नलिका बनानी और धूमयंत्र तथा बस्तिआदि यंत्र ये सब यथायोग्य अध्यायोंमें प्रकाशित किये गये हैं ॥ २५ ॥
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