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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (२१५) तैदृद्वैरस्थिसंलग्नशल्याहरणमिष्यते ॥
कीलबद्धविमुक्तायौ सन्देशौ षोडशाडुलौ ॥७॥ तिन दृढरूप यंत्रोंकरके हड्डियोंमें लगेहुये शल्यका निकासना बांछित है और मसूरके आकारवाले कीलकरके बँधाहुआ और त्यागाहुआ है मुख जिन्होंका ऐसे और १६अंगुल प्रमाणकरके संयुक्त॥७॥
त्वशिरस्नायुपिशितलग्नशल्यापकर्षणौ ॥
षडङ्गुलोऽन्यो हरणे सूक्ष्मशल्योपपक्ष्मणाम् ॥ ८॥ और त्वचा, नाडी, नस, मांस इन्होंमें लगेहुये शल्यको बैंचनेवाले संदेश अर्थात् चिमटे बनाने उचित है और छः अंगुलोंकरके प्रमाणित संदंश सूक्ष्म शल्य और नेत्रआदिके वर्ममें होनेवाले रोमआदिको हरनेके वास्ते बनाया जाता है ॥ ८ ॥
मुचुण्डी सूक्ष्मदन्तर्जुमूले रुचकभूषणा ॥
गम्भीरत्रणमांसानामर्मणः शेषितस्य च ॥९॥ सूक्ष्मदंतोंसे संयुक्त और कोमलरूप और हाथकरके ग्रहण करनेकी जगह अंगुलीयकरूप गहनासे संयुक्त और गंभीरत्रणगत मांसोंके तथा शेष रहे अर्मके निकासनेके अर्थ मुचुंडीसंज्ञक यंत्र बनाना उचित है ॥ ९॥
द्वे द्वादशाङ्गुले मत्स्यतालबद्दयेकतालके ।
तालयन्त्रे स्मृते कर्णनाडी शल्यापहारिणी ॥ १० ॥ बारह अंगुलप्रमाणसे संयुक्त और मछलीके गलतालकी तरह दोनों तर्फको मछलीके मुखके समान एकएक तालसे संयुक्त और कर्णनाडीके शल्यको हरनेवाले दो तालयंत्र बनाने उचित हैं ॥१०॥
नाडीयन्त्राणि शुषिराण्येकानेकमुखानि च ॥
स्रोतोगतानां शल्यानामामयानाञ्च दर्शने ॥ ११॥ छिद्रोंसे संयुक्त और एक तथा अनेकमुखोंसे संयुक्त नाडीयंत्र स्त्रोतोंमें प्राप्त हुये शल्य और रोगोंक देखनेवास्ते ॥ ११ ॥
क्रियाणां सुकरत्वाय कुर्यादाचूषणाय च ॥
तद्विस्तारपरीणाहदैर्ध्य स्रोतोऽनुरोधतः ॥ १२॥ और शस्त्र, खार, अग्नि आदि क्रियाओंके सुकर पनेके अर्थ और विषकरके दग्धहुये अंगोंके आचूषणके अर्थ बनाने उचित हैं परंतु इन यंत्रोंका विस्तार और मुटाई और लंबाई स्रोतोंके अनुरोध करनी चाहिये ॥ १२॥
दशाङ्गुलार्धनाहान्तः कण्ठशल्यावलोकने ॥ नाडी पञ्चमुखच्छिद्रा चतुष्कर्णस्य संग्रहे ॥ १३ ॥
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