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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (१४९) आरग्वधेन्द्रयवपाटलिकाकतिक्तानिम्बामृतामधुरसाश्रुववृक्षपाठाः भूनिम्बसैर्यकपटोलकरञ्जयुग्मंसप्तच्छदाग्निसुषवीफलबाणघोण्टाः१७ __ अमलतास-इंद्रजव-वसंतदूती-करंजवल्ली-नींब-गिलोय-मूर्वा-कंटकारीवृक्ष-पाठा-चिरायतापीयाबांसा-परवल–दोनों करंजुवे-सतविन-चीता-मेढाशिंगी-मैनफल-पीयाबांसा-सुपारी॥१७॥
आरग्वधादिर्जयति च्छर्दिकुष्ठविषज्वरान् ॥
कर्फ कण्डूं प्रमेहं च दुष्टव्रणविशोधनः ॥ १८॥ यह भारग्वधादिगण-छार्द-कुष्ठ-विष-ज्वर-कफ-खाज-प्रमेह इन्होंको जीतता है और . दुष्टव्रणको शोधता है ॥ १८ ॥
असनतिनिशभूर्जश्वेतवाहप्रकीर्याखदिरकदरभण्डीशिंशपामेषशृङ्ग्यः॥ त्रिहिमतलपलाशा जोंगकः शाकशालौ
क्रमुकधवकुलिंगच्छागकर्णाश्वकर्णाः ॥ १९ ॥ आसन अर्थात पीतशाल--तिवस-भोजपत्र-अर्जुनवृक्ष-पूतिकरंजुआ-खर-खैरकी आकृतिवाला खैरसार-शिरस-मडलपत्रिका-मेंढाशिंगी-सफेदचंदन-रक्तचंदन-पतिचंदन-ताड-केशूअगर-वरदारु-शाल-सुपारी-धोके फूल-शाकयव-अजकर्णी-अश्वकर्ण ॥ १९ ॥
असनादिर्विजयते श्वित्रकुष्ठकफक्रिमीन् ।
पाण्डुरोगं प्रमेहं च मेदोदोषनिबर्हणः॥ २०॥ यह असनादि गण श्वित्रकुष्ठ-कफ-कृमिरोग-पांडुरोग-प्रमेहको जीतता है और मेददोषको घटाता है ॥ २० ॥
वरणसैर्यकयुग्मशतावरीदहनमोरटबिल्वविषाणिकाः॥
द्विवृहतीद्विकरञ्जजयाद्वयं वहलपल्लवदर्भरुजाकराः॥ २१ ॥ वरणा-दोनों सहचर-शतावरी-चीता-मूर्वा-वेलगिरी-मेंढाशिंगी-दोनोंकटेहली-दोनोकरंजुके अरनी-हरडै-सहोजना-कुशा-हिंताल ॥ २१ ॥
वरणादिः कर्फ मेदो मन्दाग्नित्वं नियच्छति ॥
अधोवातं शिरःशूलं गुल्मं चान्तः सविद्रधिम् ॥ २२ ॥ यह वरणादिगण कफ मेददोष मंदाग्नि अधोवात शिरका शूल गुल्म अंतर्विद्रधीको दूर करता है ॥ २२ ॥
ऊषकस्तुत्थकं हिंगु कासासद्वयसैन्धवम्॥ सशिलाजतु कृच्छाश्मगुल्ममेदःकफापहम् ॥ २३॥
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