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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (१४७) मैनफल-कूडा-कूठ-देवदाली-मुलहटी-यच-दशमूल–देवदार-रायशण-इंद्रजव-सोंफ-कडुवी तोरी-कुलथो-शहद-सेंधानमक-निशोत ये सब औषध निरूहणहैं ॥ ३॥ वेल्लापामार्गव्योषदा-सुराला वीजं शैरीषं बार्हतं शैग्रवं च ॥ सारो माधूकः सैन्धवंतायशैलं त्रुटयौ पृथ्वीका शोधयन्त्युत्तमाङ्गमष्ट
बायविडंग-ऊंगा-सूट-मिरच-पीपल-दारुहलदी-सातला-शिरसकेबीज-बडीकटेहलीके बीजसहोजनाके बीज-मधुपुष्पसार-सेंधानमक-रसोत-छोटी इलायची-बडीइलायची-हिंगुपत्रो ये सब औषध शिरको शोधते हैं ॥ ४ ॥
भद्रदास नतं कुष्टं दशमूलं बलाद्वयम् ॥
वायुं वीरतरादिश्च विदार्यादिश्च नाशयेत् ॥५॥ देवदार-तगर-कूठ-दशमूल-दोनों खरेहटी ये सब और वीरतादि गणके औषध और विदारीआदि गणके औषध ये सब वायुको नाशते हैं ॥ ५ ॥ दूर्वानन्तानिम्बवासात्मगुप्ता गुन्द्राऽभीरुः शीतपाकी प्रियङ्गः॥ न्यग्रोधादिः पद्मकादिः स्थिरे द्वे पद्मं वन्यं सारिवादिश्च पित्तम् ॥६॥ __दूब-धमासा-नींब-वांसा-कौंच-पदएरक-तृणपटेर-शतावरी-काकणंती-श्यामा और न्यग्रो धादिगण-पद्मकादिगण-शालपर्णी-पृश्निपर्णी--कमल-कुटंनट--सारिवादिगण ये सब औषध पित्तको हरते हैं ॥ ६॥
आरग्वधादिरादिर्मुष्ककाद्योसनादिकः॥
सुरसादिः समुस्तादिवत्सकादिर्वलासजित् ॥७॥ आरग्वधादिगण-अर्कादिगण-मुष्ककादिगण-असनादिगण-सुरसादिगण-मुस्तादिगण-वत्सकादिगण ये सब कफको जीतते हैं ॥ ७ ॥
जीवन्ती काकोल्यो मेदे द्वे मुद्माषपण्यौँ च ॥
ऋषभकजीवकमधुकं चेतिगणो जीवनीयाख्यः॥८॥ जीवंती-काकोलो-क्षीरकाकोली-मेदा–महामेदा-मूंगपर्णी-माषपर्णी-ऋषभक--जीवक-मुलहटी इन औपधोंको जीवनीयगण कहते हैं ॥ ८ ॥
विदारिपञ्चाङ्गुलवृश्चिकाली वृश्चीवदेवाह्वयशूर्पपर्ण्यः॥
कण्डूकरीजीवनबस्वसंज्ञे द्वे पञ्चकेगोपसुतात्रिपादी॥९॥ विदारीकंद-आरंड-मेढासींगी-क्षुद्रसांठी-देवदार-मूंगपर्णी -माषपर्णी-कौंच-शतावरी--वीराजीती-जीवक ऋषभक-बडीकटैहली-छोटीकटैहली-शालपर्णी-पृश्निपर्णी-गोखरू-सारिवा-अनंत मूल--हंसपादी ॥९॥
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