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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (१३५) और सुदर शीतल-रमणीक-गंधोंका उपसेवन, गुणवाले हारोंको कंठमें पहनना-मणियों को हृदयमें धारण करना ॥ ५॥ ..
कर्पूरचन्दनोशीरैरनुलेपः क्षणे क्षण ॥
प्रदोषश्चन्द्रमाः सौधं हारि गीतं हिमोऽनिलः ॥६॥ और क्षणक्षणमें कपूर-चंदन खसका अनुलेपन प्रदोषसमय-चंद्रमा--'धवलगृह-मनको हरनेवाला गीत-शीतलवायु ॥ ६ ॥
अयन्त्रणसुखं मित्रं पुत्रः सन्दिग्धमुग्धवाक् ॥
छन्दानुवर्तिनो दाराः प्रियाः शीलविभूषिताः ॥७॥ यंत्रणसे रहित सुख मित्र, संदिग्ध और मुग्धवाणीवाला पुत्र, मनकी इच्छाके अनुसार वर्तनेवाली और प्रिय और शीलपने करके विभूषित स्त्रियां ॥ ७ ॥
शीताम्बुधारागर्भाणि गृहाण्युद्यानदीर्घिकाः ॥
सुतीर्थविपुलस्वच्छसलिलाशयसैकते ॥८॥ शीतलपान के फुहारोंकरके गर्भित स्थान- उपवन-गृहमें बावडी और सुतीर्थ विपुल-स्वच्छजलको स्थानके समीपमें बारेतके देशमें ॥ ८ ॥
साम्भोजजलतीरान्ते कायमाने द्रुमाकुले ॥
सौम्या भावाः पयः सर्पिविरेकश्च विशेषतः॥९॥ और कमलोंकरके सहित जलके तीरके अंतमें वृक्षोंसे व्याप्त देशमें वसना सौम्यभाव-दूध-वृत जुलाब-ये सब विशेषकरके पित्तके उपक्रम हैं ॥ ९॥
श्लेष्मणो विधिना युक्तं तीक्ष्णं वमनरेचनम् ॥
अन्नं रूक्षाल्पतीक्ष्णोक्ष्णं कटुतिक्तकषायकम् ॥१०॥ विधिकरके युक्त किया तीक्ष्ण वमन. और विरेचन और रूक्ष-अल्प-तक्षिण-उष्ण-कटुतिक्त-कषाय युक्त अन्न ॥ १० ॥
दीर्घकालस्थितं मद्यं रतिप्रीतिप्रजागरः ॥
अनेकरूपो व्यायामश्चिन्ता रूक्षं विमर्दनम् ॥ ११॥ दीर्घकालतक स्थित हुई मदिरा-रति-प्रीति-जागना-अनेकरूपोंवाला व्यायाम-चिंता-रूखापन-विमर्दन ॥ ११ ॥
विशेषाद्वमनं यूषः क्षौद्रं मेदोनमौषधम् ॥
धूमोपवासगण्डूषा निःसुखत्वं सुखाय च ॥ १२॥ विशषकरके वमन-यूष-शहद-मेदको नाशनेवाली औषध-धूम-उपवास--गडप अर्थात् कुलेसुखका अभाव परिश्रम आदि सुखके अर्थ है. ॥ १२॥
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