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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । . द्वादशोऽध्यायः।
अथातो दोषभेदीयाध्यायं व्याख्यास्यामः । इसके अनंतर दोपभेदीयनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे।
पक्वाशयकटीसक्थिश्रोतास्थिस्पर्शनेन्द्रियम् ॥
स्थानं वातस्य तत्रापि पक्काधानं विशेषतः ॥१॥ पक्वाशय-कटि-सक्थि-कान-अस्थि--स्वचा ये छहों वातके स्थान है परंतु इन्होंमें पक्काशय विशेषकरके वातका स्थान है ॥ १ ॥
नाभिरामाशयः स्वेदो लसीका रुधिरं रसः ॥
दृक् स्पर्शनं च पित्तस्य नाभिरत्र विशेषतः ॥२॥ ___ नाभि-आमाशय-पसीना-लसीका-अर्थात् जलके समान द्रव-रक्त--रस--नेत्र--त्वचा ये आठों पित्तके स्थान है, परंतु इन्होंमें नाभि विशेषकरके पित्तका स्थान है ॥ २ ॥
उरःकण्ठशिरःक्लोमपर्वाण्यामाशयो रसः॥
मेदो घ्राणं च जिह्वा च कफस्य सुतरामुरः॥३॥ छाती-कंठ-शिर-तषास्थान-संधि-आमाशय-रस-मंद-नासिका-जीभ ये दशों कफके स्थान हैं परंतु इन्होंमें विशेष करके छाती करका स्थान है ॥३॥
प्राणादिभेदात् पश्चात्मा वायुः प्राणोऽत्र मूर्द्धगः॥
उरःकण्ठचरो बुद्धिहृदयोन्दियचित्तधृक् ॥ ४॥ प्राण-अपान-ज्यान-समान-उदान-इन भेदोंकरके वायु पांच प्रकारका है, और इन्होमें प्राणवायु शिरमें रहता है, छाती और कंठमें विचरता है, और बुद्धि-हृदय-इंद्रिय-चित्तको धारता
ष्टीवनक्षवद्गारनिःश्वासान्नाप्रवेशकृत्॥
उरःस्थानमुदानस्य नासानाभिगलांश्चरेत् ॥ ५॥ टीवन--छींक-डकार--शरीरके भीतरको श्वास--अन्नके प्रवेशको करता है उदानवायुका प्रधान स्थान छाती है, और नासिका--नाभि--गल--इन्होंमें विचरतार्ह ॥ ५ ॥
वाक्प्रवृत्तिप्रयत्नोर्जावलवर्णस्मृतिक्रियः॥
व्यानो हृदि स्थितः कृत्स्नदेहचारी महाजवः॥६॥ और वाणीकी प्रवृत्ति-उद्यम-पराक्रम-बल-वर्ण-स्मृति-इन कर्मोको करता है, व्यानवायुका स्थान हृदय है, और यह सकल देहमें विचारता है और शीघ्रगतिबाला है ॥ ६ ॥
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