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सूत्रस्थानं भाषांटीकासमेतम् ।
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(७३)
कोलमज्जगुणैस्तद्वत्तृट्छर्दिकासजिच्च सः ॥ पक्कं सुदुर्जरं बिल्वं दोषलं पूतिमारुतम् ॥ १२३ ॥
बेरकी मज्जामेंभी चिरोंजीकी मज्जाके समान गुण हैं परंतु तृपा छर्दि खांसी इन्होंको भी नाशती है, पकी हुई बेलगिरी जरती नहीं है, और दोषोंको उपजाती है, और शरीर में दुर्गंधित वातको उपजाती है ।। १२३ ॥
दीपनं कफवातनं बालं ब्राह्यभयं हि तत् ॥ कपित्थमानं कण्ठनं दोषलं दोषघाति तु ॥
१२४ ॥
कच्ची बेलागरी दीपन हैं, कफ और वातको नाशती है, और दोनों तरहकी बेलागरी ग्राही अर्थात् स्तंभन है, कच्चा कैथफल कंठको नाशता है, और दोपों को करता है ।। १२४ ॥ पक्कं हिध्मावमथुजित्सर्वं याहि विषापहम् ॥
जाम्बवं गुरु विष्टम्भ शीतलं भृशवातलम् ॥ १२५ ॥
और पकाहुआ कैथफल दोषोंको नाशता है, और हिचकी को और छर्दिको जीतता है और दोनोंतरहके कैथफल स्तंभन हैं और विषको नाशते हैं जामनका फल भारी है विष्टंभी है शीतल और अतिवातको करता है ॥ १२९ ॥
संग्राहि मूत्रशकृतारकण्ठ्यं कफपित्तनुत् ॥
वातपित्तास्रद्वालं बद्धास्थि कफपित्तकृत् ॥ १२६ ॥
मूत्र और विष्टको थांभता है, और कंटमें हित नहीं है, कफ और पित्तको नाशता है कच्ची अमियां वात और रक्तपित्तको करती है, और गुठलीवाला कच्चा आम कफ और पित्तको करता है ॥ १२६ ॥
गुर्वा वातजित्पक्कं स्वाद्वम्लं कफशुक्रकृत् ॥
वृक्षाम्लं ग्राहि रूक्षोष्णं वातश्लेष्महरं लघु ॥ १२७ ॥
पकाद्दुआ आम भारी है वातको जीतता है मधुर और खड्डा है, कफ और वीर्य्यको करता है, - वृक्षपर पके आमका फल स्तंभन है, गरम है बात और कफको हरता है और हलका है ।। १२७॥ शम्या गुरुष्णं केशनं रूक्षं पीलु तु पित्तलम् ॥
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कफवातहरं भेदि लोहार्शः कृमि गुल्मनुत् ॥ १२८ ॥
लेंगका फल भारी है गरमहै, बालोंको नाशता है, रूक्ष है और पीलुफल पित्तको करता है कफ और बात को हरता है भेदी है और लहिरोग - कृमि - गुल्म- इन्होंको नाशता है ॥ १२८॥ सतिक्तं स्वादु यत्पीलु नात्युष्णं तत्रिदोषजित् ॥ त्वक्तिक्तकटुका स्निग्धा मातुलंगस्य वातजित् ॥ १२९ ॥